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राजकुमारी प्रियंवदा

 राजा विजय कुमार एक विशाल और समृद्ध राज्य नौगढ़ के शासक थे। शुरू में उनका शासन काफी अच्छा रहा, जहां पूरे राज्य में समृद्धि थी पर जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती गई, उनके शासन शैली में दिक्कत आने लगी। वे राज्य का काफी धन बेकार कामों में लगाने लगे, जिस कारण से कई मंत्री और राज्य के लोग उनसे नाराज हो गए थे। राजा ज्यादा समय नृत्य देखने में व्यतीत करने लगे, जिससे कि रोजमर्रा राज दरबार में अमान्य स्थिति आ गई थी। 

राज्य के कई मंत्री और सैनिक राजा के व्यवहार से दुखी और चिंतित रहते थे। लोगों ने कई बार राजा को समझाया कि वह थोड़ा ध्यान राज पाठ पर भी दें पर राजा ने उनकी एक न सुनी! उनकी इस लापरवाही का फायदा जल्दी ही दुश्मन उठाने वाले थे। उसी राज में भानूमल नाम का मंत्री रहता था, जो राजा से इर्ष्या करता था। उसने जब देखा कि राजा का ध्यान अपने राज्य पर नहीं है तो उसने राजा को गद्दी से हटाने की सोची।

सबसे पहले उसने दरबार के कई मंत्री को अपनी तरफ शामिल किया और फिर एक रात उसने राजा विजय कुमार को उनके कक्ष में ही मार डाला। रातों रात राजा को मारने के बाद भानूमल ने राजा के करीबी और परिवार वालों को मारना शुरू कर दिया। कई लोग अचनाक से हुए हमले से हैरान थे और किसी तरह अपनी जान बचाने के लिए इधर उधर भागे। कई रानी को मार दिया गया या बंदी बना दिया गया। सुबह होते ही राज्य में एलान कर दिया गया की राजा विजय कुमार की आचनक मृत्यु होने के बाद मंत्री भानूमल राज्य के नए राजा होंगे। राज्य के लोगों को लगा की कुछ गड़बड़ जरूर है पर वो लोग कुछ कर भी तो नहीं सकते थे, उन्हें लगा कि कम से कम नया राजा उनकी बात तो सुनेगा। कुछ ही दिनों में भानूमल राजा बन गया और उसकी ताज पोसी भी हो गई। 


विजय कुमार के सारे करीबी और परिवार वाले या तो मारे जा चुके थे या उन्हें बंदी बनाया जा चुका था और कुछ तो राज्य छोड़ कर भाग गए थे। भानूमल से बचते हुए एक मंत्री भागे थे
, जिनका नाम गोपाल दास था और उनकी पत्नी जिनका नाम राधिका था। वो पिछले राजा के बेहद करीबी थे, इसलिए जब राजा को मारा दिया गया और उनके परिवार को भी मारा जा रहा था, तब गोपाल और राधिका ने राजा के सबसे बड़े बेटे प्रियांशु को महल से चुप चाप निकल लाए। कुछ दिन राज्य में गुप्त तरीके से रहने के बाद वो दूसरे राज्य की तरफ निकल गए। गोपाल ने निकलते समय ढेर सारे गहने और सोने के सिक्के अपने साथ ले आया था। राजकुमार प्रियांशु को लड़कियों के कपड़े पहना दिया गया था ताकि राजकुमार को राज्य के लोग ना पहचान पाए। गोपाल को जब मालूम हुआ कि भानूमल ने राजा विजय के सारे रिश्तेदार और करीबी को मरवा ही दिया है तो उसे लगा की अब राजकुमार प्रियांशु को बचाने के लिए उसे कहीं दूर ही ले जाना होगा क्योंकि राजकुमार ही राजा गद्दी के हकदार हैं। राजकुमार प्रियांशु जब कई दिनों से लगातार चलते चलते नए राज्य में पहुंचे तो वो गुस्सा हो गया। एक लड़का और ऊपर से राजकुमार होने के बावजूद भी उसे एक लड़की के कपड़े पहन कर घूमना पड़ रहा है और उसके बाकी के घरवाले कहां है।

गोपाल ने पहले सोचा था कि राजकुमार को कुछ नही बताएगा पर जब राजकुमार जिद करने लगा तब गोपाल ने ना चाहते हुए भी बताया कि कैसे राजकुमार के पिता, माता और बाकी परिवार को मार दिया गया है और अब वो ही सिर्फ बचा है। राजकुमार चन्द्रभान के आंखों में आंसू थे और मन में गुस्सा भी था। उसने गोपाल और राधिका से माफी मांगी और कहा की अब से वही उसके अपने हैं और समय आने पर वो भानुमल से बदला भी जरूर लेगा। राजकुमार की आयु उस वक्त लगभग 14 साल थी और इतनी समझ थी कि वो क्या बोल रहा था। गोपाल ने नए राज्य में रहने का इंतजाम कर लिया था और फिलहाल वो नए राज्य में ही चुपके से रहने वाले थे।

वो तीनों नए राज्य में रहने लगे। मंत्री जोकि अब राजा बन बैठा था उसने नए राज्य में कई नए गुप्तचर और दोस्त बना लिया। गोपाल को जब मालूम हुआ कि भानूमल अभी भी राजकुमार के पीछे पड़ा है तो उसे बहुत चिंता होने लगी। कुछ ही दिन में भानूमल के सैनिक को नए राज्य में देखने के बाद उसने सबसे पहले राजकुमार का बाहर निकलना बंद कर दिया। उसकी पत्नी राधिका ने कहा की वो राजकुमार को पूरी जिंदगी घर में कैद करके तो नही रख सकते हैं और राजकुमार को अपना बदला भी तो लेना है और राज्य को भी उन राक्षसों से मुक्त करवाना है। बहुत सोचने के बाद राधिका को लगा की अगर राजकुमार लड़कियों की तरह रहेगें तो वो बाहर घूम भी सकेगें और प्रशिक्षण भी ले सकेगें और लड़की के भेष में वापस महल भी जा सकते हैं। राधिका ने यह बात गोपाल और राजकुमार को बताई। राजकुमार प्रियांशु ने पहले तो मना कर दिया पर उसे भी बाद में लगा की फिलहाल यही एक ऐसा तरीका है वापस महल जाकर अपना हक वापिस लेने का। 


अगले ही दिन से राधिका राजकुमार प्रियांशु को लड़कियों की तरह तैयार होना
, उनकी तरह चलना और रहने सिखाने लगी। राजकुमार को कुछ समय तो बहुत दिक्कत हुई पर धीरे धीरे वो लड़कियों की तरह ही तैयार होके और उनकी तरह ही बाकी काम करने लगा। गोपाल ने एक जाने माने वैद्य से एक ऐसी औषधि लाई जो की राजकुमार के शरीर को धीरे धीरे लड़कियों जैसा बना देता। राधिका राजकुमार प्रियांशु को स्त्रियोचित नृत्य भी सिखाने लगी और घर के काम भी सिखा दिया। लगभग चार साल तक राधिका राजकुमार प्रियांशु को प्रशिक्षण देती रही। अब राजकुमार प्रियांशु का शरीर बदल कर बिल्कुल एक युवती जैसा हो गया था और उसके शरीर पर बड़े स्तन, लंबे बाल और चिकनी त्वचा उसे एक युवती बना रहे थे, बस उसका लिंग ही उसे मर्द होने का एहसास दिलाता था। उसे देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वो एक लड़का और ऊपर से राजकुमार होगा। गोपाल ने कहा था कि राजकुमार वापस औषधि लेकर पूर्ण रूप से वापस मर्द वाला शरीर पा सकते है इसलिए राजकुमार ने पहले औषधि लेकर स्त्री वाला शरीर पा लिया। राजकुमार प्रियांशु अब राजकुमारी प्रियंवदा बन गए थे।

गोपाल ने एक नृत्य समूह में राजकुमारी प्रियंवदा को शामिल करवा दिया और उस नृत्य समूह को भानूमल के राज्य में भेज दिया गया। राजकुमारी प्रियंवदा अपने पुराने राज्य में पहुंची तो उसकी आंखें नम हो गई। वो पुराने दिन याद करने लगी जब वो एक राजकुमार थी और उसके पिता उस राज्य के राजा थे। भानुमल के राज में अफसरशाही और घूसखोरी बढ़ गई थी और पूरे राज्य में डर का माहौल था। राजकुमारी प्रियंवदा और उसके साथ के समूह के लोग महल में पहुंचे, जहां उन्हें एक कमरा दिया गया रहने के लिए। असल में समूह के लोग गोपाल के गुप्तचर थे और गोपाल खुद भी भेष बदलकर राज्य में आया था। अगले दिन ही राजकुमारी प्रियंवदा और उसके समूह ने भानूमल के सामने नृत्य किया और सारे दरबार के लोगो ने नृत्य को खूब पसंद किया। कुछ ही दिनों में राजकुमारी प्रियंवदा के नृत्य ने सबका मन मोह लिया था और भानूमल भी प्रियंवदा की ओर आकर्षित होने लगा था। प्रियंवदा ने भी अपनी चाल चली और भानूमल के बड़े बेटे अर्जुन को अपनी ओर आकर्षित करने लगी। कुछ ही दिनों में ऐसा हो गया की भानूमल और अर्जुन दोनो ही प्रियंवदा के प्यार में पड़ गए। प्रियंवदा को जब इस बात का एहसास हुआ तो तो उसने भी दोनो को प्यार के प्रलोभन में लुभाने लगी।


प्रियंवदा और उसके समूह के लोग पूरे महल में घूम घूम के अलग अलग जानकारी जुटने लगे थे। प्रियंवदा खुद भी उस महल के सारे गुप्त कमरे और रास्ते जानती थी।उसने और उसके साथियों ने जल्द ही महल में हो रही सारी बातें जानकारी प्राप्त करनी शुरू कर दी थी। उन्हें ये पता चल गया था की भानूमल के प्रति राज्य में नाराजगी बढ़ती जा रही है। प्रियंवदा ने महल में नृत्य करना जारी रखा और वो अब भानूमल को और लुभाने लगी थी। अब भानूमल और प्रियंवदा के बीच बातचीत होने लगी थी और सभी से छिपकर प्रियंवदा की अर्जुन से भी बात होने लगी थी। प्रियंवदा ने मौके का फायदा उठाते हुए दोनों बाप बेटे के बीच आग लगाने लगी थी
, जिससे भानूमल और अर्जुन के बीच दरार बढ़ने लगी। प्रियंवदा ने अर्जुन को उकसा दिया कि भानूमल किसी और अपना उत्तराधिकारी घोषित करने वाला है।

एक दिन राजकुमार अर्जुन शिकार पर निकला और प्रियंवदा को अपने साथ शिकार पर ले गया। प्रियंवदा अर्जुन को अपने मृगनयनों और अदाओं से लुभा रही थी और अर्जुन खुद को प्रियंवदा के इन अदाओ से उसकी ओर मोहित हुआ जा रहा था। प्रियंवदा के प्रेम जाल में अर्जुन जंगल में ऐसा खो गया कि अब उसे अपने राज्य में जाने का रास्ता भी नहीं मिल रहा था। अर्जुन प्रियंवदा को प्रभावित करने के लिए उसे ये नहीं बताया कि वो रास्ता भटक चुके हैं। अर्जुन और प्रियंवदा को जंगल में भटकते हुए शाम हो चुकी थी और दोनों ही बहुत थकान महसूस भी कर रहे थे। जंगल में भटकते भटकते अर्जुन और प्रियंवदा को अब भूख-प्यास ने बहुत ही ज्यादा व्याकुल कर दिया था। 


तभी अचानक उन्हें एक छोटी सी नदी दिखाई थी जो बहुत ही सुन्दर दिख रही थी। शीशे की तरह साफ़ जल स्त्रोत देखकर दोनों खुद को रोक नहीं सके। अर्जुन और प्रियंवदा जब उस जल स्त्रोत के पास गए तभी एक निर्धन ब्राह्मण वहां से गुजरे और उन्होंने दोनों को उस जल को ग्रहण करने से रोकने की कोशिश की
, लेकिन तबक अर्जुन और प्रियंवदा शीशे की तरह साफ जल को ग्रहण कर चुके थे। वो निर्धन ब्राह्मण वहां से जा चुके थे और अर्जुन ने प्रियंवदा को बाहों में उठाकर उस नदी में प्रवेश किया और एक डुबकी लगा दी। लेकिन दोनों ही इस बात से अनभिज्ञ थे कि उस नदी को श्राप था कि जो कोई पुरुष उस नदी में स्नान करेगा, वो स्त्री बन जाएगा। और यही हुआ भी, अर्जुन को एहसास हुआ कि उसके शरीर में कुछ बदलाव शुरू हो गया है और यही एहसास प्रियंवदा को भी हुआ। चूँकि प्रियंवदा जो आज तक प्रियांशु होते हुए भी दवाइयों की वजह से स्त्रियों के जैसा शरीर में थी, अब वो सच में पूरी तरह से स्त्री रूप में परिवर्तित हो चुकी थी। यही अर्जुन के साथ भी हुआ, वो भी पूरी तरह से स्त्री रूप में परिवर्तित हो चूका था।

स्त्री बनने के साथ ही अर्जुन और प्रियांशु जो प्रियंवदा के रूप में पहले से था, उनके वस्त्र एक जैसे और स्त्रियोचित हो चुके थे। दोनों का रूप सौंदर्य स्वर्ग से उतरी किसी अप्सरा जैसी थी, एक जैसे स्त्रियों के वस्त्र, नरम कलाइयाँ, मृगनयनी आँखें, लम्बे घने बाल, सुराहीदार गला और रसभरी गुलाबी होंठ, मांसल जांघें, बड़े बड़े स्तन, पतली कमर, गोल नितबों और अद्भुत सौंदर्य जो अर्जुन और प्रियंवदा की खूबसूरती को निखार रही थी और साथ में ही दोनों के शरीर पर एक जैसे गहने भी थे, माथे पर मांगटीका शोभ रहा था तो गले में एक जैसा स्वर्ण कंठहार, कलाइयों में स्वर्ण कंगन, स्वर्ण हाथफूल, कानों में बड़ी बड़ी सोने की झूमकियाँ और नाक में बड़ा सा सोने का नथिया, पैरों में चाँदी की पायल भी काफी भारी थी जिसमे घुंघरू भी थे और इन सब के कारण दोनों का सौंदर्य स्वर्ग की अप्सरा सा हो गया था। 

प्रियंवदा बहुत दुखी तो थी, क्यूंकि उससे उसका पुरुषत्व सदा के लिए छीन चूका था और वो अपने दुःख को अर्जुन या किसी के भी सामने प्रकट नहीं कर सकती थी। क्यूंकि सब वैसे भी प्रियंवदा को स्त्री रूप में ही जानते थे, कोई ये नहीं जनता था कि प्रियंवदा प्रियांशु है, एक पुरुष जिसका ऊपरी शरीर मिश्रित औषधि के कारण स्त्रियों जैसा कर दिया गया था। लेकिन जब अर्जुन को अपने स्त्री रूप का एहसास हुआ तो वो इतना दुखी हो गया कि वहीँ नदी के तट पर बैठकर विलाप करने लगा था। प्रियंवदा ने खुद को संभाला और फिर अर्जुन को चुप होने को कहा, उसे शांत करने की कोशिश की, लेकिन वो बेतहाशा रोये ही जा रहा था। अपने स्त्री रूप को स्वीकारना अर्जुन के इतना सहज भी नहीं था। प्रियंवदा ने अर्जुन से कहा कि अब उन्हें अपने राज्य लौट जाना चाहिए तो अर्जुन और विलाप करने लगा और कहने लगा कि अब वो राज्य जाकर क्या करेगा। इस स्त्री रूप में वो अपने माता पिता का सामना कैसे करेगा, क्या कहेगा वो उन्हें, कैसे साबित करेगा कि वो अर्जुन है, ना कि कोई आम स्त्री।

प्रियंवदा ने अर्जुन को समझाया कि अब उसे एक नए पहचान के साथ राज्य में जाना होगा और अर्जुन को नया नाम मिला, सुप्रिया। फिर दोनों ने किसी तरह जंगल से निकलने में सफल हुए और प्रियंवदा सुप्रिया को अपने घर ले गयी। घर आने के बाद गोपालदास ने प्रियंवदा से सुप्रिया के बारे में प्रश्न किया और प्रियंवदा ने उन्हें बताया कि सुप्रिया उसे जंगल में मिली तो वो उसे घर ले आयी। प्रियंवदा की खूबसूरती का यूँ अचानक बढ़ जाना, वस्त्र का यूँ बदल जाना, आवाज़ में यूँ मधुर स्वर का होना, उसके शरीर का यूँ अत्यधिक कोमल हो जाना और एक अनजान स्त्री जो उसके सामान ही रूपवती थी, उसे अपने साथ घर लेकर आना, ये सभी बातें गोपालदास को परेशान कर रही थी।

क्यूंकि प्रियंवदा के पास पहले इतने गहने भी नहीं थे और जब वो महल से निकली थी तब भी साधारण भेषभूषा में ही थी और सुप्रिया के वस्त्र भी प्रियंवदा के वस्त्र के सामान थे, दोनों के गहने भी एक सामान थे। प्रियंवदा के बात करने का तौर तरीके, व्यव्हार, शर्माना और गोपालदास की पत्नी के सामने यूँ शर्माते हुए हर सवाल का जवाब देते देख गोपालदास को शक हुआ। अगले ही दिन से गोपालदास की पत्नी ने सुप्रिया को नृत्य की शिक्षा और पाक कला की शिक्षा देना प्रारम्भ किया, वहीँ राज्य में हाहाकार मचा था। जब प्रियंवदा महल में लौटकर गयी तब राजा भानूमल ने उसे भरे दरबार में बुलाकर अपने पुत्र अर्जुन के बारे में पूछने लगा। प्रियंवदा का रूप यौवन अपने पहले से कहीं ज्यादा खूबसूरत हो चूका था और स्त्री होने के साथ ही, सही मायनों में स्त्री गुण भी झलक रहा था। 


प्रियंवदा ने राजा को बताया कि राजकुमार अर्जुन उसे जंगल में अकेला छोड़कर शिकार करने आगे निकल गया और रात्रि तक इंतज़ार करने के बाद भी जब वो नहीं आया तो प्रियंवदा अपने घर आ गयी। इधर राजा रानी दोनों बहुत परेशान थे
, राजकुमार का कुछ पता नहीं चल रहा था और प्रजा में हाहाकार मचा था कि अब राजा के बाद राज्य का उत्तराधिकारी कौन होगा। इधर प्रियंवदा को राजनर्तकी घोषित कर देने के बाद उसे अब सिर्फ राजाओं के प्रत्यक्ष अपना नृत्य प्रस्तुत करना होता था और अन्य नर्तकियों को प्रशिक्षित करना। समय का बहाव किसी के रुके रुका नहीं था और देखते ही देखते एक वर्ष और बीत गया। इधर प्रियंवदा और गोपालदास ने राज्य को अधिग्रहित करने के लिए अपनी तैयारियों में इज़ाफ़ा कर लिया था और उनके खुद के गुप्तचर राजमहल के चप्पे चप्पे की जानकारी उन तक पहुंचा रहे थे। राज्य के वार्षिकोत्सव के अवसर पर राज्य में तरह तरह की प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया, जिसमे नृत्य प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया, जिसका प्रतिनिधित्व प्रियंवदा कर रही थी।

सुप्रिया भी नृत्य प्रतियोगिता में सम्मिलित हुई और उसके नृत्य कला को सभी ने बहुत पसंद किया, खासकर राजा भानूमल को सुप्रिया और उसका नृत्य दोनों ही बहुत पसंद आया। सुप्रिया का चयन कर लिया गया और अब सुप्रिया को महल में रहने की व्यवस्था प्रदान की गयी। सुप्रिया का मंत्र्मुघ्ध कर देने वाला नृत्य, चेहरे के तरह तरह के भाव, बलखाती पतली कमर, असीम सौंदर्य से राजा इतना मंत्र्मुघ्ध हो गया कि उसने निर्णय लिया कि वो सुप्रिया से विवाह कर उसे राज्य की नयी रानी बनाएगा। राजा भानूमल के इस निर्णय से सुप्रिया के पैरों तले जमीन ही खिसक गयी, वो प्रियंवदा के पास जाकर बहुत विलाप करने लगी, उसके आंसू नहीं रुक रहे थे और प्रियंवदा की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था। तब भी प्रियंवदा ने सुप्रिया को समझाया कि उसके पिता कितने बड़े हवस के पुजारी हैं और सुप्रिया को राजा पर बड़ा क्रोध भी आया। अपने ही पिता से विवाह होने जा रहा था सुप्रिया का और वो इस बारे में किसी से ना तो कुछ कहने में समर्थ थी और ना ही राजा के निर्णय की अवहेलना करने में समर्थ थी राजा भानूमल नहीं जानता था कि जिस सुप्रिया से वो विवाह करने जा रहा है, वो कोई और नहीं बल्कि उसी का पुत्र अर्जुन था जो श्रापित नदी में स्नान करके स्त्री बन गया।

प्रियंवदा के अलावे इस सत्य को जानने वाला कोई और नहीं था और सुप्रिया ये सत्य किसी को बता भी नहीं सकती थी। लेकिन गोपालदास को इस बात का पूरा ज्ञान था और साथ ही ये भी पता था कि अब राजकुमार प्रियांशु भी पुरुष नहीं रहे बल्कि एक स्त्री बन चुके हैं। बहुत दुखी थे गोपालदास लेकिन उन्होंने इस बारे में किसी से कुछ भी नहीं कहा और राजा के निर्णय को सहर्ष स्वीकार कर लिया। इधर कुछ दिनों तक विलाप करने के बाद सुप्रिया खुद को इस विवाह के लिए तैयार करने लगी। विवाह का आयोजन हुआ, दूर दूर से अलग अलग राज्यों के राजा भी पधारे, प्रियंवदा के ननिहाल से वहां के यदु राजकुमार नकुल का आगमन हुआ, जिससे गोपालदास की मुलाकात हुई। गोपालदास ने राजकुमार नकुल को अपनी योजना में शामिल कर लिया था और उसे ही इस राज्य का राजा बनना स्वीकारने को भी कहा। राजकुमार नकुल ने गोपालदास से कहा कि उसे राज्य पर शासन करने में कोई रूचि नहीं है वो इस राज्य को मुक्त करवाकर अपने घर वापिस चला जायेगा।

गोपालदास को राजकुमार नकुल की इस विनम्रता से बड़ी ख़ुशी हुई। उसी रात राजकुमार नकुल का परिचय नृत्यांगना प्रियंवदा बने राजकुमार प्रियांशु से हुई। स्त्री होने और स्त्रियोचित गुण होने के कारण उसके सामने प्रियंवदा का यूँ शर्माना राजकुमार नकुल का दिल जीत ले गयी। प्रियंवदा वहाँ एक गुप्त सुचना देने आयी थी जिसे देने के बाद वो राजमहल लौट गयी, लेकिन राजकुमार के दिल में प्रियंवदा के लिए प्रेम जागृत कर गयी। विवाह का दिन भी आ गया, सुप्रिया के साज श्रृंगार का आयोजन किया गया और मुहूर्त से पहले वो खूबसूरत दुल्हन की तरह तैयार, घूँघट किये बैठी अपने भाग्य को कोस रही थी। इधर प्रियंवदा बेहद खुश थी और उसे बहुत हंसी भी आ रही थी।

कुछ देर बाद दुल्हन के रूप में बैठी सुप्रिया को मंडप पर ले जाया गया और उसे उसी के पिता राजा भानूमल जो दूल्हे के रूप में तैयार थे, उसके दायीं तरफ बिठा दिया गया। ब्राह्मण पंडित मंत्रोचारण कर रहे थे और उसी के कहे अनुसार राजा ने सुप्रिया के गले में मंगलसूत्र पहनाया, मांग में सिंदूर भरा, नाक में एक वजनदार सोने की नथ डाल दिया, पैरों में बिछुए पहनाये गए और सात फेरों के बाद सुप्रिया अब अपने खुद के पिता की दुल्हन बन चुकी थी। इधर राजकुमार नकुल की नज़रें प्रियंवदा से नहीं विलग हो रही थी और जब जब प्रियंवदा को इसका एहसास होता कि राजकुमार नकुल उसे ऐसे देख रहे हैं, वो शर्माने लगती। दोनों के बीच नज़रों का खेल यूँ ही चलता रहा और विवाह के समापन के बाद जहाँ दुल्हन को उसके कक्ष में ले जाया गया, वहीँ राज्य भोज का इंतेज़ाम भी किया गया। राज्य के नागरिकों को पहली बार राजा की तरफ से कुछ मुफ्त में मिल रहा था, वहीँ अन्य राज्य के राजाओं के साथ रात्रि भोज करके राजा सुहागरात मनाने अपने कक्ष में चला गया।

इधर राजकुमार नकुल ने गोपालदास से प्रियंवदा का हाथ माँगा। गोपालदास ने शर्त रखी कि पहले इस दुराचारी राजा को सत्ता से हटाने के बाद, अगर वो इस राज्य का राजा बनने के लिए तैयार है, तभी प्रियंवदा से उसका विवाह संभव हो सकता है। राजकुमार नकुल ने गोपालदास के इस बात के लिए अपनी स्वीकृति भरी और गोपालदास इस विवाह के लिए अपनी स्वीकृति दे दी। गोपालदास के मुँह से प्रियंवदा और राजकुमार नकुल के विवाह के बारे में सुनकर उसकी पत्नी राधिका अचंभित थी और वो ये जानने के लिए उत्सुक थी कि दो पुरुष कैसे विवाह कर सकते हैं! जब उसने गोपालदास से अपनी उत्सुकता जाहिर की तब उसने राधिका को बताया कि एक वर्ष पहले एक घटनाक्रम हुआ। गोपालदास ने बताया कि राजकुमार अर्जुन के साथ जब राजकुमार प्रियांशु अपने स्त्री भेष में जब जंगल गए थे तब दोनों ने एक श्रापित नदी में स्नान किया जिसे श्राप था कि जो भी पुरुष उस नदी में स्नान करेगा, वो स्त्री बन जायेगा और तब राजकुमार अर्जुन जिसे सुप्रिया नाम देकर प्रियंवदा घर लेकर आयी थी और उसने ये बात भी छिपाकर रखा कि वो भी एक स्त्री बन चुकी है। ये जानकार राधिका को बहुत ख़ुशी मिली और वो प्रियंवदा को और भी स्नेह देने लगी।

इधर राजा भानूमल अपनी नई नवेली दुल्हन के साथ एक माह से भोग विलास में डूबा हुआ था। राज्य की नई महारानी सुप्रिया से किसी को भी मिलने की अनुमति नहीं थी लेकिन एक सेविका श्यामा जो कि गोपालदास की गुप्तचर थी, उसे ही अनुमति थी, सुप्रिया की सेवा करने की। एक रात श्यामा ने गोपालदास को बताया कि जब भी वो सुप्रिया के कमरे में जाती है, वहां वो रोते हुए मिलती है, उसके तन से कपडे विलग हुए पाती है और गहने भी बिखरे मिलते हैं। स्नान के प्रहर सुप्रिया के बदन पर बहुत से खँरोच दिखती है, जिसपर मलहम लगाने का भी कोई लाभ नहीं होता। सुप्रिया की हालत बहुत दयनीय हो रही है और राजा भानूमल बहुत खुश रहता है। भोग विलासता और काम वासना ने राजा भानूमल को कमजोर कर दिया है, वो दिन दिन भर गहरी नींद में सोया रहता है, सुप्रिया से अपनी सेवा करवाता है और जिस भी प्रहर उसका मन होता है, वो सुप्रिया के साथ सम्भोग करता है। श्यामा ने बताया कि ये बहुत ही उचित प्रहर है, राजा को सत्ता से हटाने का, उसकी पहली रानी भी उसके भोग विलासता और काम वासना में डूबे अपने राजा के पास नहीं रहती जो एक समय में उसकी अच्छी सलाहकार मानी जाती थी। गोपालदास ने श्यामा से कहा कि राजा को एक नदी के बारे में बताकर उसे उस नदी तट पर विहार के लिए ले आये। श्याम ने हामी भरी और महल लौट गयी।

इधर राजकुमार नकुल और गोपालदास ने निर्णय लिया कि राजकुमार नकुल अपनी सेना को राज्य की सीमा पर स्थिर कर दें और राजकुमार नकुल ने प्रियंवदा को इन सब से दूर रखने को कहा। कुछ ही दिनों में रानी सुप्रिया ने गर्भ धारण कर लिया और राज्य में रानी सुप्रिया की गर्भावस्था की जानकारी आम नागरिकों में फ़ैल गयी। इधर एक ओर जहाँ राजकुमार अर्जुन से रानी सुप्रिया बनने के बाद राजा भानूमल से विवाह के पश्चात आज वो गर्भवती थी, अपने ही पिता के बच्चे को जन्म भी देने वाली थी और उसकी सेवा के लिए अन्य दासियाँ सुप्रिया की सेवा में प्रशस्त कर दी गयीं। वहीँ दूसरी ओर श्यामा के हर रोज़ उस नदी की तारीफ जानकार राजा भानूमल ने निर्णय लिया कि वो उस नदी को देखने जरूर जायेगा। श्यामा ने इस बात की जानकारी गोपालदास को दी और राजा भानूमल को शिकार के बहाने नदी के तट पर ले गयी। उधर गोपालदास के गुप्तचर ने राज्य के मंत्रियों का अपहरण कर लिया और राजकुमार नकुल गाजे बाजे के साथ अपनी सेना के साथ राज्य में प्रवेश कर लिया।

इधर इन सब बातों से अनजान राजा भानूमल श्यामा के साथ उस तट के मनोरम दृश्य देखकर फिर से अपने पिता बनने की ख़ुशी को श्यामा के सामने जाहिर कर रहा था। तभी श्यामा ने राजा भानूमल को समझाया कि नदी में स्नान करने वाले पुरुष को सदा सौभाग्य मिलने का आशीर्वाद मिलता है तो राजा ने बिना देर किये नदी में स्नान करने के लिए प्रवेश किया और देखते ही देखते वो भी स्त्री रूप में परिवर्तित हो गया। तभी श्यामा ने राजा भानूमल को समझाया कि नदी में स्नान करने वाले पुरुष को सदा सौभाग्य मिलने का आशीर्वाद मिलता है तो राजा ने बिना देर किये नदी में स्नान करने के लिए प्रवेश किया और देखते ही देखते वो भी स्त्री रूप में परिवर्तित हो गया और उसका रूप किसी नवयुवती की तरह अत्यंत मंत्रमुग्ध कर देने वाला और यौवन भी लौट आया। लेकिन जब राजा को अपने बदले हुए स्त्री रूप और भेषभूषा का ज्ञान हुआ तबतक बहुत देर हो चूका था। नदी से बाहर निकलकर वो श्यामा को ढूंढने लगा ताकि वो उसे इसका उचित दंड दे सके, लेकिन उसके सामने गोपालदास और राधिका मुस्कुराते हुए खड़े थे।

गोपालदास के सामने स्त्री रूपी राजा भानूमल विलाप करने लगा, अपने किये की क्षमा प्रार्थना करने लगा और अपने पुरुषत्व को फिर से पाने की गुहार करने लगा। तब गोपालदास ने स्त्री रूपी राजा भानूमल को उसके किये सभी पाप गिनाये और अंत में बताया कि कैसे उसके पुत्र अर्जुन को भी ऐसे ही स्त्री बनाया गया था, जिसका विवाह उसी के साथ करवाया गया और उसका पुत्र आज उसी के कारण गर्भावस्था की अवस्था में उसकी रानी बन बैठा है। ये सुनकर राजा भानुमाल को एहसास हुआ कि उसके किये पाप अक्षम्य है। फिर गोपालदास ने उसे बताया कि अब उसका राज्य उससे छीन चूका है और एक योग्य शासक के रूप में यदु राजकुमार नकुल ने सत्ता धारण कर लिया है और अब वो इस राज्य के राजा हैं। ये सुनकर स्त्री रूपी राजा भानूमल को अपनी पत्नी और बच्चे का भान हुआ और वो उनकी चिंता में विलाप करने लगा। गोपालदास की पत्नी राधिका ने स्त्री रूपी राजा को एक नया नाम दिया, भानुमति और उसे क्षमा करके, एक नया जीवन जीने की सलाह देकर अपने साथ अपने घर ले आयी। राधिका ने भानुमति को आश्वाशन दिया कि यदु राजकुमार नकुल जो कि अब महाराज बन चुके हैं वो उसका पूरा ध्यान रखेंगे। भानुमति अपने स्त्री शरीर में खुद को ढालने की पूरी कोशिश कर रही थी लेकिन जब जब उसे अपने पुत्र, पत्नी और खोये राज्य का अनुभव होता, वो रो पड़ती। 

गोपालदास को राज्य के महामंत्री का पद दिया गया, राधिका को नृत्य गुरु माँ का पद दिया गया और पुरे मंत्रिमंडल में बदलाव कर दिया गया। पुराने मंत्रियों को मृत्युदंड देने की जगह अज्ञान में रखकर एक एक करके उसी नदी में स्नान करवाया गया और उन सभी को स्त्री रूप में परिवर्तित करके राधिका के पास नृत्यांगना बनने की शिक्षा हेतु ले जाया गया और नृत्य गुरु माँ राधिका ने भानुमति के साथ सभी स्त्री रूपी मंत्रियों को नृत्य शिक्षा देना प्रारम्भ कर दिया। राजकुमार नकुल का राज्याभिषेक किया गया तब उसके परिवार को भी आमंत्रित किया गया। राजकुमार नकुल के राज्याभिषेक के बाद उसने अपने परिवार को प्रियंवदा से मिलवाया और उसके परिवार को प्रियंवदा बेहद पसंद आयी। गोपालदास ने अपने वचन के अनुसार प्रियंवदा को राजा नकुल से विवाह करने की सलाह दी और गोपालदास की आज्ञा मानकर उसने भी इस विवाह के लिए हामी भरी। कुछ ही दिनों में प्रियंवदा का विवाह राजा नकुल से करवा दिया गया और विवाह के पश्चात् राजा नकुल प्रियंवदा को अपनी दुल्हन बनाकर अपने राज्य घुमाने ले गया। 

उस राज्य का वैभव देखकर रानी प्रियंवदा बहुत आश्चर्यचकित हुई और वहां की प्रजा ने अपनी नयी रानी का स्वागत किया। कुछ दिनों तक वहां रहने के बाद राजा नकुल और रानी प्रियंवदा अपने राज्य लौट गए। इधर नौवे महीने में सुप्रिया ने एक कन्या को जन्म दिया, जिसका नाम भानुप्रिया रखा गया और उसके ललन पालन की पूरी जिम्मेदारी रानी प्रियंवदा की देखरेख में होने लगी। राज्य में फिर से खुशहाली लौटी, करवृद्धि को कम कर दिया गया, फसल के लिए किसानों में राज्य कोष से मुद्राएं दान में दी गयीं और राजा नकुल और रानी प्रियंवदा दोनों प्रजा में अक्सर घूमते और सभी को आश्वश्त करते कि किसी भी तरह की समस्या का निदान करेंगे। कुछ माह पश्चात विदेशी राज्य के राजा विशम्भर जब राजा नकुल से मिलने आये तब उन्हें भानुमति के नृत्य ने मोहित कर दिया और उन्होंने राजा नकुल से कहा कि वो भानुमति से विवाह करके उसे अपनी पांचवी रानी बनाकर अपने राज्य में ले जाना चाहते हैं। राजा नकुल ने इसके लिए हामी भरी और भानुमति से बिना अनुमति या आश्वस्त किये, अचानक उसका विवाह राजा विशम्भर से करवा दिया गया।

विवाह के पश्चात राजा विशम्भर ने भानुमति को अपनी दुल्हन बना लिया और उसे अपनी पांचवी पत्नी के रूप में अपने साथ अपने राज्य ले गया। कुछ माह पश्चात उस राज्य के राजा विशम्भर ने अपनी पांचवी पत्नी भानुमति की गर्भावस्था की सुचना के साथ राज्य के लिए बहुत सारा स्वर्ण आभूषण, हीरे मोती उपहार स्वरुप भिजवाया। ये सब जानकार गोपालदास और राधिका बहुत खुश हुईं, आखिरकार भानूमल को अपने जीवन का उचित फल प्राप्त हो रहा था। इधर अपने ही पिता के अंश को अपनी कोख से जन्म देने के बाद सुप्रिया अपनी पुत्री के ललन पालन में जुट गयी और एक दिन जब मतस्य देश के राजकुमार ज्ञानेंद्र राज्य अवलोकन के लिए आये तब उन्होंने सुप्रिया से विवाह का प्रस्ताव रखा और उसकी पुत्री को अपनी पुत्री स्वीकारने को तैयार हो गया। राजकुमार ने सुप्रिया से विवाह किया और उसे अपनी दुल्हन बनाकर उसे उसकी पुत्री समेत अपने राज्य ले गया। इधर कुछ मास पश्चात रानी प्रियंवदा ने भी गर्भधारण कर लिया और उसकी देखरेख राज्य की नृत्य गुरु माँ राधिका ने स्वयं करने लगी। 

राज्य में ख़ुशी का माहौल था, प्रजा में धन धान्य की कोई कमी नहीं थी, किसानों के खेत में फसल पहले से कहीं ज्यादा लहलहा रही रही थी और जब भी कोई राजा इस राज्य पर आक्रमण करने के लिए सोचता, तब गोपालदास उस राजा को बात करने के बहाने उसी नदी के तट पर ले जाता और वार्ता शुरू करने से पहले उन्हें नदी में स्नान करवा देता और स्त्री रूप में परिवर्तित कर उन्हें अपने राज्य में नर्तकी बनाकर रख लेता। बाद में उन नर्तकियों का विवाह दूसरे राज्य के राजा या राजकुमार से करवा देता और अपनी प्रजा को सुख शांति से रहने में उनकी मदद करता। बिना युद्ध किये नौगढ़ की विजय पताका फहरा रही थी और प्रजा में बहुत सुख और शांति के साथ धन्य धान्य के साथ बहुत सम्पन्नता थी। कुछ माह पश्चात रानी प्रियंवदा को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम नवरत्न रखा गया। रानी प्रियंवदा को मातृत्व की अनुभूति ने भाव विभोर कर दिया और वो अपने पुत्र को अपना स्नेह देने लगी। जब प्रियंवदा ने अपने पुत्र नवरत्न को अपने सीने के दूध से संचित किया, तब उसे मातृत्व का वो अनुभव हुआ जो सिर्फ एक माँ कर सकती थी। अपने पति राजा नकुल की रानी बनी प्रियंवदा अब एक माँ बन चुकी थी। अपने अतीत को भुलाकर प्रियंवदा अपने पति राजा नकुल के सानिध्य और प्रेम को पाकर और अपने पुत्र नवरत्न के लालन पालन में बहुत खुश थी। 


 

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