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गांव की बात by Dressing Desire

 


कई साल पहले की बात है,दो गांव बलरामपुर और तिलकपुर आस पास के गांव था।दोनों गांव में हमेशा झगड़ा रहता था और बहुत मारपीट होती थी।दोनों गांव के मर्द एक दूसरे खूब लड़ते थे और कई बार मौत भी हो जाती थी।एक बार बलरामपुर के एक लड़के ने तिलकपुर की लड़की को छेड़ दिया और जबरदस्ती करने की कोशिश की।वह लड़की किसी तरह अपनी इज्जत बचाते हुए अपने गांव तिलकपुर भागी।वो लड़की बहुत रो रही थी।उसके घर वालों ने उससे पूछा कि तुम क्यों रो रही हो तो उसने बताया की कैसे बलरामपुर के लड़के ने उसके साथ दुर्व्यवहार किया था।उसके पिता सहित तिलकपुर के बाकी गांव वाले गुस्से से लाल हो गए।सबने मिलकर पंचायत बुलाई।पंचायत में सबने मिलकर फैसला लिया की इस बार बलरामपुर के लोगों को सबक सिखाना होगा।

तिलकपुर के सारे मर्दों ने अपने अपने हथियार निकल ली और बलरामपुर की तरफ निकल गए।रात के समय बलरामपुर के सारे लोग अपने गांव में आराम कर रहे थे और उन्हें हमले की कोई आशंका नहीं थी।रात में ही तिलकपुर के लोगों ने हमला बोल दिया और एक एक करके सारे मर्दों को मारने पीटने लगे। तिलकपुर वालों ने पहले से सोच रखा था की किसी भी कीमत पर बलरामपुर की औरतों पर किसी तरह का हमला नहीं करेगें।थोड़े ही देर में पूरे गांव में मारपीट चालू हो गई।बलरामपुर के मर्दों को बिल्कुल समय नहीं मिला था लेकिन वो भी हमले का जवाब देने लगे पर वो मुकाबला नहीं कर सके।


बलरामपुर की औरतों अब चिंतित हो गई थी और वो तिलकपुर से आए मर्दों से माफी मांगने लगी।तिलकपुर के लोगों ने बताया कि कैसे उस लड़के ने छेड़छाड़ किया था।सारी औरतें चुप हो गई पर उन्होंने कहा की जिसने छेड़ा है उसे सजा दे।तिलकपुर के लोगों ने गांव के बाहर ही उस लड़की को लाए थे जिसके साथ छेड़छाड़ हुआ था,उस लड़की को बुलाया गया।बलरामपुर के सारे मर्द चोट खाके एक ही जगह पर थे,जायदा तर लोगों के शरीर से खून निकल रहा था।वो लड़की आई और उसे उन मर्दों से उस छेड़ने वाले लड़के को पहचानें के लिए कहा गया।लड़की को वो लड़का नहीं मिलता है और उस लड़की को लड़के का नाम भी पता था लेकिन पता करने पर मालूम हुआ कि वो लड़का मारपीट में बचते हुए गांव से भाग गया था।

तिलकपुर के लोग ने पहले उस लड़की को वापस भेज दिया।उन्होंने बलरामपुर के औरतों को कहा कि अगर उस लड़के को सजा नही दे सकते तो पूरे गांव के मर्दों को सजा मिलेगी।सारी औरतों ने बहुत कोशिश की समझाने की पर तिलकपुर के लोग नही माने।तिलकपुर के लोगों ने आपस में बात की और उनके एक आदमी ने बलरामपुर के लोग से कहा की आज से इस बलरामपुर गांव के सारे मर्द को अगले एक महीने तक औरत के कपड़े पहन के ही रहना होगा क्योंकि इस गांव के मर्दों को औरतों की इज्जत करने नही आती है,और सारे मर्द बाहर सिर्फ औरतों वाले कपड़े पहन कर और घूंघट करके ही निकलेगा।उस तिलकपुर के आदमी ने आगे कहा की वो लोग उसी गांव में रहकर देखेंगे की उनकी नियम का पालन हो रहा है की नही।बलरामपुर के मर्दों ने इसका विरोध किया तो तिलकपुर के मर्दों ने फिर से मारपीट करके शांत करवा दिया।बलरामपुर की औरतों ने मर्दों को समझाया कि तिलकपुर वालों की बात मान ले क्योंकि अगर वैसा नही करेगें तो उनकी जान भी जा सकती है।आखिर में हार के बलरामपुर वाले मर्द सजा माने के लिए तैयार हो गए।


सारे मर्दों की मरहम पट्टी हुई और वो घर चले गए और उनके के पास बस रात का समय था क्यूंकि सुबह होने ही वाली थी।औरतों ने अपने अपने पति और अपने बेटे को तैयार करने में लग गई।कई मर्दों ने अपनी मर्दानगी दिखनाई चाही तो उनकी घर की औरतों ने उन्हें बताया की कैसे मर्दनगी उनकी सिर्फ घर पर चलती है बाहर तो वह पीट कर आ जाते हैं।मर्दों का मुंह चुप हो जाता है।हर घर में सारे मर्द तैयार होने में लग जाते है।वो लोग पहले अपने शरीर के बाल साफ़ करते है।कई मर्दों की विशाल शरीर में महिलाें के कपड़े नही आ रहे थे।औरतों ने किसी तरह से उन मर्दों को फिलहाल किसी तरह कपड़े पहना कर तैयार किया और कुछ ने तो माप ले लिया ताकि बाद में नाप का कपड़ा सिला जा सके।कई औरतों को अजीब लग रहा था अपने घर के मर्दों को साड़ी में देख कर और कुछ तो अपने मर्दों को छेड़ भी रही थी।मर्दों के अंदर गुस्सा था लेकिन वो कुछ कर नही सकते थे।जो पत्नी आजतक उनके सामने ऊंची आवाज में बात नही करती थी वहीं आज उनके साथ एक सहेली की तरह व्यवहार कर रही थी।

पर बलरामपुर गांव में एक ऐसा भी मर्द था जो आज बहुत खुश था।उसका नाम सुशील था और वो मारपीट के समय बच कर अपने घर में छुप गया था।सुशील की पत्नी सुनंदा जानती थी कि उसके पति को औरतों के कपड़े पहने का बहुत शौक था और उससे पहले भी वो औरतों के कपड़े पहन चुका था।आज मगर सुशील को लग रहा था की अगले एक महीने वो पूरे समय साड़ी पहन सकता है।सुनंदा जानती थी कि सुशील बहुत खुश है और इसलिए उसकी खुशी को दुगना करने के लिए उसने सुशील को कहा की आज रात वो उसे दुलहन की तरह तैयार करेगी।सुशील भी खुश हो गया यह सुनकर।रात ज्यादा हो गई थी पर भी सुशील और सुनंदा लगे रहे।सुनंदा ने सुशील का बेहतरीन तरीके से श्रृंगार कर के एक नई नवेली दुल्हन बना दिया।सुशील भी दुल्हन की तरह ही शरमा रहा था।सुनंदा तो एक पल खुद ही सुशील की खूबसूरती देख कर जलने लगी की सुशील इतना सुंदर कैसे हो सकता है।


सुनंदा ने सोचा कि जब आज रात सुशील एक दुल्हन है तो उस दुल्हन के लिए दूल्हा तो होना चाहिए।सुनंदा समझ गई उसे क्या करना है,वो उठी और सुशील के कुर्ते पायजामे पहन लिए और काली पेंसिल से मूछ बना ली।सुनंदा की इस क्रिया से सुशील समझ गया की आज रात वो एक दुल्हन और पत्नी बनेगा।सुशील बिस्तर से उठ कर सुनंदा के पास आया तो सुनंदा ने अलमारी से अपनी एक पुरानी मंगलसूत्र निकल कर सुशील को पहना दिया और फिर सिंदूर भी भर दिया।सुशील ने पैर छुए तो सुनंदा ने आशिर्वाद देते हुए कहा की आज से लगभग एक महीने तक तुम सुशील नही सुशीला हो।उसके बाद सुनंदा ने सुशीला को उठा लिया और चूमने लगी।उस रात सुशीला की अंदर की औरत को सुनंदा ने बाहर ला दिया।सेक्स करते समय भी ऐसा लग रहा था की सुनंदा ही पति है।गांव के बाकी मर्द औरतों के कपड़े पहन कर न जाने क्या किया होगा पर सुशील की रात तो बहुत ही यादगार बीती।

बलरामपुर की औरतों ने तिलकपुर वालों से पूछा की अगर घर के मर्द औरत की तरह रहेगें तो घर में पैसा कैसे आएगा,इस पर विचार करके तिलकपुर वालों ने कहा की पूरे एक महीने का राशन का खर्चा वो लोग उठा लेंगे।बलरामपुर गांव में लगभग 50 घर थे तो उतने घर के राशन वितरण का फैसला ले लिया गया।बलरामपुर के सारे मर्द अब औरतों के वेश में थे।चूंकि पेशाब करने के लिए बाहर जाना पड़ता था तब औरतें ही उन मर्दों को बाहर ले जाती थी और बाहर जाते समय उन्हें अपना घूंघट डाल कर ही ले जाना पड़ता था।तिलकपुर के मर्द पूरे बलरामपुर गांव में घूम कर परेधारी करते थे और यह पक्का करते थे की बलरामपुर वाले मर्द सजा का पालन कर रहे है की नही।जैसे जैसे समय बीतता गया वैसे बलरामपुर के मर्दों को घर का काम भी करना पड़ता था कुछ मजबूरी में तो कुछ को मन लगने लगा था।पूरे गांव में बस सुशील ही था जो सुशीला बनके एक पूरी गृहणी की तरह रहता था और सुनंदा को पति का दर्जा दिया हुआ था।बलरामपुर वाले मर्दों की सजा एक महीने के बाद खत्म हो गई और उसके बाद सारे मर्दों ने कसम खाई की वो औरतों का सम्मान घर में और बाहर दोनों जगह करेगें।बाकी के गांव वालों को यह अनोखी सजा अच्छी लगी सिवाय जो मारपीट हुई।अब बलरामपुर और तिलकपुर के लोगों में पहले जैसे मारपीट नही होती है और बलरामपुर का कोई मर्द भी उन एक महीने को नहीं भुला है।इन सब के बीच सुशील ने पूरे एक महीने गृहणी बनकर अपने सपने पूरे कर लिया,उसके बाद भी वो औरतों के कपड़े पहनता था पर सिर्फ रात में,अक्सर रात में सुनंदा एक पति और सुशील पत्नी हो जाता था।सुशील कभी कभी सोचता है की काश कुछ ऐसा हो और बिना सजा मिले वो हर दिन घर पर एक गृहणी बनकर रह सके।

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