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मैजिक वर्ल्ड

ये सब शुरू हुआ जब हम सब दोस्त कॉलेज ख़त्म होने के बाद हम सभी ने घूमने का फैसला किया और आउटिंग पर निकले। मेरा नाम रोहन है, मेरी गर्लफ्रेंड नेहा, मेरे दोस्त सुरेश, उसकी गर्लफ्रेंड निकिता और अक्षय, उसकी गर्लफ्रेंड सविता। हम सब कॉलेज में एक साथ पढ़े और हमारा ग्रुप काफी यूनाइट था। लोनावला की पहाड़ियों में घूमने का सपना बरसो पुराना था और हमारे पेरेंट्स ने भी हमें आउटिंग की पूरी इज़ाज़त दी, तभी हम आउटिंग पर निकले थे।



एक हफ्ते के आउटिंग में रिवर राफ्टिंग, जंगल में पेड़ों पर झूलना, अँधेरे जंगल में तारे देखना, शेरों का गुफा बनाना, पिकनिक करना, जंगल के नए नए रास्तों को एक्स्प्लोर करना और जंगली जानवरों की खोज करना और पुरे वीक हमने खूब एन्जॉय किया। हम छह जन जहाँ से भी गुज़रते, वहां पेड़ों पर अपना नाम लिख देते और अपनी स्टोरी लिखते की हमने वहाँ कितनी मस्तियाँ की। मैंने नेहा के साथ रोमांटिक नाईट का खूब मजा लिया, वैसे तो कॉलेज टाइम से ही मेरा और नेहा का अफेयर चल रहा था लेकिन नेहा को अपनी बाहों में लेकर रोमांटिक नाईट का मजा हमे और भी नज़दीक ला रही थी। मेरे और नेहा के पेरेंट्स को हमारा रिश्ता वैसे भी मंजूर था तो किस्स और रोमांस की पूरी आजादी थी। अक्षय सविता के साथ और सुरेश निकिता के साथ रोमांटिक पल को खूब एन्जॉय कर रहे थे। काफी यादगार सफर था हमारी लाइफ का और हम छह जनों ने काफी एन्जॉय किया।  


ये जंगल में हमारा आखिरी दिन था और हम छह जनों ने फैसला किया कि हम सब की नौकरी लग जाने के बाद और जब हम अच्छे पैसे कमाने लगेंगे तो हम यहाँ फिर से आएंगे। जंगल में घूमने का रोमांचक सफर अब अगले ही दिन ख़त्म होने वाला था। उस रात हम छह जन एक साथ टेंट के बाहर लकड़ियों को जोड़कर आग जला कर अंताक्षरी खेल रहे थे तभी हमने एक पेड़ से रौशनी की किरण आती दिखाई दी। वो रौशनी काफी दूर तक फैली थी और हमे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वो क्या चीज़ है! मैंने, रोहन और सुरेश ने फैसला किया कि हम वहां जाकर देखेंगे कि वहां क्या है! हालाँकि निकिता, नेहा और सविता ने हमें मना भी किया, लेकिन हमने सोचा क्या पता कोई और ग्रुप हो जो आउटिंग के लिए आया हो या नागमणि हो उसे पाकर हमारी लाइफ ही बदल जाये।


हुआ भी वही, वहां जो कुछ भी था, उसने हमारी लाइफ को पूरी तरह से बदल कर रख दिया। इम्मैच्युर होने का खामियाज़ा हमें ऐसे भुगतना पड़ेगा इसका हमें अंदाजा नहीं था। हम तीनो जब उस पेड़ के पास गए तो उस रौशनी के सोर्स को जानने की तलब वैसे तो हम छह जनों को थी लेकिन उस रौशनी तक जाने की हिम्मत सिर्फ हम तीनो को थी। किसी भी तरह के विपरीत परिस्थिति से अनजान हम तीनों उस रौशनी की ओर बढ़े तभी वहां सविता, निकिता और नेहा ने आकर हमें रोका और कहा कि अगर कुछ ऐसा वैसा हो गया तो क्या होगा। लेकिन ना जाने उस रौशनी में ऐसा क्या था जो हम तीनो उसकी वजह जानने को बेताब थे। मैंने निकिता, नेहा और सविता को टेंट में जाने को कहा और हम तीनों उस रौशनी के करीब गए, कुछ भी नहीं हुआ। हमने पेड़ को छू कर भी देखा वहां कुछ भी था, पेड़ के चारो तरफ करीब पांच दस मिनट्स तक जांच पड़ताल करने के बावजूद हमें कुछ भी नहीं मिला। ना ही वहां कोई और ग्रुप था और ना ही नागमणि। वो तो सिर्फ रौशनी निकल रही थी उस पेड़ से और हमे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर ये रौशनी आ कहाँ से रही है।

अक्षय: देखा सविता यहाँ आओ, यहाँ कुछ भी नहीं है। अपना स्मार्टफोन लेकर यहाँ कुछ फोटोज क्लिक करते हैं।

सविता: हम्म, तुम सब जल्दी या टेंट में ,आ जाओ, वहां ज्यादा देर मत रुको, कहीं पेड़ में आग लगी हो और पेड़ गिर गया तो?

सविता की बातें सुनकर, मैं अक्षय, सुरेश तीनो जोस से हसने लगे।

मैं: नेहा, जल्द से स्मार्टफोन ऑन करो और हमारी वीडियो बनाओ। क्या पता ये रौशनी गायब हो गयी तो इतना प्यारा मोमेंट हम खो देंगे।

नेहा ने मेरी बात पर हामी भरी और जैसे ही स्मार्टफोन को ऑन की और वीडियो बनाने के लिए पोज़ देने को बोली, ठीक वैसे ही हमे ग्रेविटी लॉस का अनुभव हुआ और हम तीनो उसी अनजान रौशनी में समाते चले गए। 



कुछ समझ नहीं आया कि हुआ क्या लेकिन उस लाइट में फाॅर्स इतना ज्यादा था कि ना तो हमें कुछ दिखाई दिया और ना ही कुछ समझ पाए और हम तीनों बेहोश होकर दूर नदी में जा गिरे। आई डोंट नो कि हम तीनो कब तक बेहोश रहे, तेज़ बारिश की बौछारों से मेरी बेहोशी टूटी और जब मैंने अपनी आँखें खोली तो देखा मेरे सामने बहुत ही खूबसूरत लड़कियां, उनका कद करीब पांच फुट रहा होगा, वे दोनों नदी के किनारे पर बैठी रो रहीं थी। 

वे दोनों बहुत ही ज्यादा हॉट थीं और उन्होंने सिर्फ लाल और नीली ट्रांसपेरेंट साड़ी लपेटी हुई थी, उन दोनों के बूब्स काफी बड़े और सुडौल थे, पतली कमर और वाइड हिप्स। मॉडल जैसी पेटीट फिगर और भीगे बालों में तो वे दोनों कहर ढा रहीं थी। मुझे अचानक ध्यान आया कि मेरे साथ अक्षय और सुरेश भी उस रौशनी में खींचे चले आये थे, लेकिन दोनों दूर दूर तक कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे। पहले मैंने सोचा कि उन दोनों लड़कियों से उनके रोने की वजह पूछूंगा और फिर उन्हें अपने साथ लेकर अक्षय और सुरेश को ढूंढने निकलूंगा।

 इट वज लाइक, मेरे सामने दो खूबसूरत अप्सराएं बैठी थीं और मैं नदी के बीच बारिश में नहाया, उनकी ओर आकर्षित होने लगा था। अभी मैं उठकर उन दोनों के पास जाने की सोच ही रहा था कि तभी दो घुड़सवार आये, साढ़े छह फुट लम्बे तगड़े और बॉडी बिल्डर। मेरे कुछ समझने से पहले ही उन दोनों ने उन दोनों लड़कियों के हाथ पीछे करके रस्से से बांधकर अपने घोड़े पर जबरदस्ती अपने साथ ले गए। आई वाज़ लाईक, मुझे कुछ समझ को आया नहीं कि हुआ क्या। मेरे सामने बैठी दोनों अप्सराओं को दो अनजान घुड़सवार अपने घोड़े पर जबरदस्ती अपने साथ ले गए और मैं मन मसोस कर रह गया। मैं उठा और नदी से बाहर आने को जैसे ही अपना एक कदम बढ़ाया, मुझे अपने शरीर में कुछ अजीब सा फील हुआ। मेरा लंड मिसिंग था और जब मैंने अपनी छाती पर हाथ फेरा, ओह माय गॉड, मेरे इतने बड़े बड़े बूब्स! मैं लड़की कैसे बन गया।

उन दोनों अप्सराओं की तरह मेरे शरीर पर एक पीले रंग की ट्रांसपेरेंट साड़ी थी जिसमे मेरे बड़े बड़े बूब्स, कर्वी बॉडी, वाइड हिप्स और मेरे लंड की जगह वजाइना थी। ये क्या बन गया मैं, मुझे यकीन नहीं हो रहा था, मैं अब मर्द नहीं रहा, लड़की बन चूका था मैं और मुझे भी रोना आ रहा था। क्या से क्या हो गया, आँखों में आंसुओं का सैलाब लिए मैं नदी से बाहर आया, मेरे बूब्स इतने भारी थे कि मेरे हर एक कदम से ऊपर नीचे हो रहे थे और मुझे छाती के भारीपन से दर्द हो रहा था।

अब तो मुझे डर भी सताने लगा था कि अगर मुझे भी किसी ने ऐसे देख लिया तो मुझे भी उठाकर ले जायेंगे। अंदर से मैं इतना डर गया कि मैं जंगल की दूसरे घने इलाके में चला गया ताकि मैं किसी की नज़रों में ना आऊं। लेकिन मैं जाऊं तो कहाँ जाऊं, इस दुविधा को किसके साथ शेयर करूँ? वो दो अनजान घुड़सवार कौन थे जिन्होंने उन दोनों अप्सराओं जैसी खूबसूरत लड़कियों को अपने साथ ले गए और वे दोनों खूबसूरत लडकियां आखिर थी कौन? हज़ारों सवालों से घिरा मैं, अनजान रस्ते पर बढ़ता ही जा रहा था। नेहा, निकिता, सविता, अक्षय और सुरेश का दूर दूर तक नामोनिशान नहीं था और मैं कुछ देर पहले तक मर्द था, अभी खुद एक औरत बना इस जंगल में भटक रहा था। मेरी साड़ी में बार बार मेरा पैर उलझ रहा था, मेरे बूब्स ऊपर नीचे हो रहे थे और मुझे छाती में बहुत दर्द दे रहे थे। समझ में नहीं आ रहा था कि मैं कहाँ जा रहा हूँ तभी एक कुटिया देखकर मुझे उम्मीद की किरण दिखाई दी। वो कुटिया देखने से साफ सुथरी और ऐसा लग रहा था मानो पुराने जमाने में बाबा लोगो की कुटिया होती है, ठीक वैसी ही। जब मैं उस कुटिया के दरवाज़े पर पहुंचा तो अंदर से एक बूढी औरत बाहर आयी।

बूढी औरत: कौन हो तुम?

मैं: सुनिए आंटी, मैं रोहन हूँ, मुंबई का रहने वाला हूँ। अपने कुछ दोस्तों के साथ जंगल घूमने आया था। मुझे नहीं पता कि मेरे दोस्त अब कहाँ हैं और मुझे उन्हें ढूंढने में आपकी मदद चाहिए!

बूढी औरत मेरी बातें सुनकर एकटक मुझे देखे जा रहीं थीं।

मैं: क्या हुआ आंटी, क्या आप मेरी मदद करेंगी?

बूढी औरत: बेटी, तुमने नाम क्या बताया अपना?

मैं: रोहन?

बूढी औरत: और तुम कहाँ के रहने वाले हो?

मैं: मुंबई!

बूढी औरत: ऐ लड़की, तू पागल है क्या? एक तो तेरा नाम लड़कों जैसा क्यों है और मुंबई, ये कौन सी जगह है? मैंने तो पहली बार सुना है ये नाम! और तू ये बार बार आंटी आंटी बोलकर क्या गाली दे रही है मुझे!

मैं: नहीं, नहीं, मैं आपको आंटी इसीलिए कह रहा हूँ क्यूंकि हम अपनों उम्र से बड़ी औरतों को आंटी कहकर उन्हें इज़्ज़त देते हैं। मुंबई एक जगह है पास में ही समुद्र किनारे है और मेरा नाम रोहन ही है और महज कुछ देर पहले तक मैं एक मर्द ही था। लेकिन ना जाने कैसे मैं उस अँधेरे जंगल से निकलकर यहाँ आ पहुंचा। मेरे दो दोस्त भी मेरे साथ उस जंगल से निकले थे लेकिन उन दोनों की कोई खबर नहीं है मेरे पास। मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मैं ये कौन सी जगह पर आ गया हूँ, देखने में तो बहुत ही ज्यादा सुन्दर है लेकिन यहाँ आते ही मैं औरत कैसे बन गया?

बूढी औरत: हम्म! मैं समझ गयी। मैं एक ज्ञानी औरत को जानती हूँ जो तुम्हारी मदद कर सकती हैं, लेकिन पहले तू तैयार हो जा। मैं तुझे साड़ी देती हूँ, अच्छे से पहने ले नहीं तो तुझे सर्दी जुकाम हो जाएगा।

मैं: मुझे साड़ी पहनने नहीं आती, आप पहना दो!



फिर उस बूढी औरत ने मुझे सिल्क साड़ी पहनाई, लेकिन उनके पास कोई ब्लाउज या ब्रा नहीं थी जिससे मैं अपने इन भारी बूब्स को बैलेंस कर सकूँ। कैसे लड़कियां अपने बूब्स को बैलेंस करती हैं अब समझ आ रहा था मुझे। मैंने उस बूढी औरत से एक सिल्क का कपडा माँगा और पनि बॉब्स को टाइट करके बांध लिया।

बूढी औरत: अरे वाह रोहन, तू तो बड़ी खूबसूरत दिख रही है।

मैं: थैंक्स!

बूढी औरत: तू फिर से गाली दे रही है मुझे?

मैं: अरे नहीं, मैं आपको शुक्रिया अदा कर रहा हूँ!

बूढी औरत: हम्म! फिर ठीक है, अब चल मेरे साथ!

 वो बूढी औरत मुझे एक पुराने से खंडहर में ले गयी। वहां एक चालीस साल की औरत आँखें बंद करके बैठी थी, उसके आस पास एक हवनकुंड, कुछ हवनसामग्री रखे थे और सफ़ेद साड़ी में वो औरत कोई योगिनी जैसी दिख रही थी। 

बूढी औरत: माता, आँखें खोलो, हम तुम्हारी शरण में आये हैं। 

उस बूढी औरत की आवाज़ सुनकर उस योगिनी ने अपनी आँखें खोली और मुस्कुराते हुए मेरी ओर देखा। 

योगिनी: कहो पुत्री, क्या समस्या है?

बूढी औरत ने मेरी तरफ देखा और मुझसे कहा कि उस योगिनी को सबकुछ बता दूँ। मैंने भी उस योगिनी को देखा, दोनों हाथ जोड़े और उनसे अपनी पूरी आप बीती कह सुनाई। 

योगिनी: रोहणी, तुम अपने आयाम से दूसरे आयाम में आ गयी हो। और जिस नदी में तुम गिरी थी, वो नदी श्रापित है। किसी भी पुरुर्ष को उसमे स्नान करने से पहले, सूर्य को अर्घ्य देना पड़ता है अन्यथा वो पुरुष स्त्री रूप में परिवर्तित हो जाता है। तुम जिस भारतखंड से आयी हो, ये वही जगह है, वही जंगल है लेकिन आयाम दूसरी है। इस आयाम में वैसे तो बाहर के आयामों से लोगों का आना जाना बंद रहता है, लेकिन अगर कोई दूसरे आयाम से इस आयाम में आता है तो वो भी यहाँ के देवी की मर्ज़ी से ही हो पाता है। तुम्हारे आयाम में 33 कोटि देवी-देवताओं में आठ वसु, ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य, इंद्र और प्रजापति की आराधना होती है लेकिन इस आयाम में सिर्फ देवी की आराधना होती है। अभी तुम जिस जगह पर हो, इस जगह का नाम देवीखंड है और यहाँ के राजा दुर्गेश प्रजापति हैं। जहाँ तक मैं देख पा रही हूँ, तुम अकेले इस आयाम में नहीं आयी हो पुत्री, तुम्हारे साथ तुम्हारी दो सहेलियां भी आयीं हैं, जिन्हे कुछ डाकू उठा ले गए हैं। 

मैं: हे भगवान्, वो दोनों अप्सराएं, मेरे दोस्त अक्षय और सुरेश भी औरत बन गए। उन दोनों को तो वो दोनों डाकू उठा ले गए हैं और वो भी मेरे सामने। मुझे नहीं पता था कि वे सुरेश और अक्षय हैं माता, तो क्या मैं और मेरे दोस्त हमेशा के लिए इस आयाम में फंसकर रह जायेंगे? उन डाकुओं से मैं अपने दोस्तों को कैसे छुड़ाऊं और यहाँ से कैसे निकलूं?

योगिनी: पुत्री, ये सब उतना आसान नहीं है, लेकिन मुश्किल भी नहीं है। लेकिन उससे पहले तुम्हे कई परीक्षाएं देनी होंगी, तुम्हारे खुद के आयाम में जाने के खुद को योग्य साबित करना पड़ेगा और सबसे बड़ी बात। इन सब से पहले तुम्हे अपनी सहेलियों को उन डाकुओं से छुड़ाकर यहाँ लेकर आना होगा। अगली अमावस्या और चन्द्रमा का संयोग अगले वर्ष कार्तिक के महीने में बन रहा है तबतक तो मैं भी कुछ नहीं कर सकती। 

मैं: माता, ऐसे ना कहो आप! मैं अपने दोस्तों को उन डाकुओं के चंगुल से कैसे छुड़ाऊं?

योगिनी: देवी माँ चाहती हैं कि तुम स्त्रीत्व को अनुभव करो, स्त्री जीवन व्यतीत करो और जानो कि स्त्री जीवन कैसा होता है! उसके लिए तुम्हे स्त्री जीवन में खुद को पूर्णतः संलग्न कर देना होगा, तुम्हारे द्वारा किया गया ये बलिदान ही तुम्हे तुम्हारे आयाम में जाने का मार्ग प्रदर्शित करेगा और तुम्हारी सहेलियों को भी ठीक ऐसा ही बलिदान देना होगा, तभी उन दोनों को भी उनके आयाम में जाने का मार्ग प्रदर्शित होगा। 

मैं: आप जैसा कहोगी, मैं वैसा ही करूँगा माता!

योगिनी: ठीक है पुत्री, सबसे पहले तुम्हे खुद के स्त्रीत्व को स्वीकारना होगा। जब तुम किसी से भी बात करोगी तो स्त्रियों के लहज़े में। स्त्रियोचित्त गुण और स्त्रियोचित्त स्वाभाव के साथ स्त्रियों की वेशभूषा धारण करना भी तुम्हारे लिए सहज हो इस बात का तुम्हे ख्याल रखना है। मेरी शिष्य रुद्रा तुम्हे इन सभी स्त्रियोचित्त गुणों, स्वभावों और वेशभूषा धारण करना सिखाएगी और तुम्हे नृत्य की शिक्षा भी दी जाएगी। जब तुम्हारे अंदर ये चारो गुण विराज जाये तो मैं तुम्हे महाराज के दरबार में नृत्यांगना बना कर ले चलूंगी और कुछ दिनों बाद तुम महाराज से अपनी दोनों सहेलियों को आजाद करवाने की बात भी कर लेना। महाराज बहुत ही दयालु हैं, वो तुम्हारी दोनों सहेलियों को उन डकैतों से आज़ाद जरूर करवा देंगे। 

मैं: माता, आप जो कुछ भी कह रही हैं मैं करने को तैयार हूँ।

योगिनी: ठीक है रोहिणी, तुम रुद्रा के साथ जाओ और जब तुम दुबारा मेरे सामने आओ तो तुम्हारे अंदर से सिर्फ स्त्रियोचित आभा दिखनी चाहिए। 

मैं: जी माता!

थोड़ी देर में वहां एक लड़की आयी, रुद्रा जिसकी बात योगिनी कर रही थी। रुद्रा, इतनी खूबसूरत कि कोई मर्द उसे देखे तो उसे वीर्यपात हो जाये। रुद्रा मुझे अपने साथ ले गयी और मेरी ट्रेनिंग शुरू हो गयी। नाक और कान छिदवाना मेरे लिए काफी मुश्किल काम था लेकिन रुद्रा ने मुझे समझाया कि स्त्रियों के नाक और कान छिदवाने के शारीरिक रूप में काफी फायदे होते हैं और उसने मेरे नाक और कान में छेद कर दी। दो महीनों के अंदर ही मैं घर के सभी कामों में महारत हासिल कर चुकी थी। साथ ही स्त्रियों की तरह वस्त्र धारण करना, श्रृंगार करना और नृत्य कला में भी मैं बहुत कुछ सिखने लगी थी। रोहन से रोहिणी बनने का सफर दूसरे महीने के अंत होते होते लगभग पूरा होने को था। अगले महीने ही महाराज दुर्गेश के राज्यसभा में सर्वश्रेष्ठ नृत्यांगना की प्रतियोगिता होनी थी और उसके लिए मुझे रुद्रा ने बखूबी तैयार कर दिया था। अब मैं घर के काम करने के बाद, हर वक़्त अपने श्रृंगार के बारे में सोचती। यहाँ की स्त्रियां साड़ी तो पहनती लेकिन कोई भी स्त्री ब्लाउज या ब्रा नहीं पहनतीं। आई डोंट नो व्हाई, वे सभी बड़ी ही खुश रहतीं लेकिन मुझे अपने दोनों बड़े बड़े उरोजों को संभालना मुश्किल होता तो मैंने रुद्रा से सिलाई कढ़ाई के बारे में भी सीख ली। मैंने अपने बूब्स के मुताबिक़ एक ब्लाउज बनायीं जो पूरी तरह से बैकलेस थी और साथ ही उनमे कुछ रंग बिरंगी डोरी भी लगा दी ताकि ब्लाउज में कसावट रहे। मैंने मूवीज में काफी हेरोइंस को बैकलेस ब्लाउज में देखकर ही अपने अनुमान के मुताबिक अपनी ब्लाउज को सिली और वो ब्लाउज पहनने के बाद रुद्रा ने मेरी बड़ी तारीफ की। हालाँकि वहां जंगलों से सिल्क वर्म्स आसानी से मिल जाते थे तो सिल्क साड़ियां ही मिलती थी पहनने को। इट इज क्वाइट हैवी लेकिन बैकलेस ब्लाउज के साथ साड़ी पहनने बाद मुझे बहुत ही अच्छा एहसास होता। उस आयाम में मैं एकलौती स्त्री थी जिसने बैकलेस ब्लाउज का निर्माण किया था और रुद्रा ने मुझसे रिक्वेस्ट करके अपने लिए भी एक बैकलेस ब्लाउज बनवायी। 

जब मैं रुद्रा से पूछी कि ब्लाउज पहनकर उसे कैसा लग रहा है तो उसने मुझसे कहा कि उसे आत्मविश्वाश का अनुभव हो रहा है और वो बहुत खुश है। मैंने भी लाइफ में पहली बार ही ब्लाउज को पहनी लेकिन मुझे भी आत्मविश्वाश का अनुभव हुआ जैसे मानो मेरे इस स्त्री शरीर को बल मिल गया हो। मैं भी उतनी ही खुश थी जितनी रुद्रा।  

आज वो दिन था जिसके लिए मैंने इतनी मेहनत की थी और रुद्रा ने मुझे इतना कुछ सिखाया था। आज सर्वश्रेष्ठ नृत्यांगा की प्रतियोगिता होनी थी, दूर दूर की नृत्यांगनाएं महाराज के महल में आने वालीं थीं, आधी से ज्यादा जनता प्रतियोगिता देखने को लालायित थीं। योगिनी माता और रुद्रा के साथ मैं भी महाराज के महल में आयी लेकिन मुझे पालकी में लाया गया था जैसे बाकी की नृत्यांगनाओं को लाया गया। सभी नृत्यांगनाओं के लिए अलग अलग कक्ष का निर्माण करवाया गया था और सभी कक्ष में बहुत सी साड़ियां, सोने चाँदी और हीरे की जवाहरातें थीं और बड़ी बड़ी आइना थी। इस आयाम में आने के बाद पहली बार मैंने खुद को देखा, ओह्ह गॉड, आई वज लुकिंग सो हॉट एंड ब्यूटीफुल। इन तीन महीनों में मैंने एक भी दिन अपने अतीत को याद नहीं किया और हर एक पल को सिर्फ और सिर्फ अपने लिए जी। आज खुद को देखकर अपनी खूबसूरती पर ही मोहित हो गयी थी मैं। रुद्रा ने मुझसे कहा कि किसी भी नृत्यांगना की खूबसूरती मुझसे ज्यादा नहीं थी और रुद्रा के अनुसार मैं इस प्रतियोगिता में भाग लेने नहीं बल्कि इस प्रतियोगिता को जीतने आयी थी। मैने इस प्रतियोगिता को जितने के लिए बहुत मेहनत की थी और महाराज के महल में एंट्री करने का ये सबसे अच्छा मौका था मेरे लिए।  

महाराज के आदेश के बाद एक के बाद सारी नर्तकियों ने अपने हुनर का प्रदर्शन किया और सबसे आखिर में मुझे नृत्य प्रदर्शित करने के लिए बुलाया गया। रुद्रा ने मुझे जितने डांस मूव्स सिखाये, मैंने उन सबको एक धागे में पिरोकर महाराज के सामने पेश कर दिया और साथ ही बॉलीवुड के कुछ स्टेप्स भी उनमे जोड़कर उसे और भी बेहतरीन तरीके से पेश किया। 


मुझे नहीं पता था कि महाराज को मेरा डांस अच्छा लगेगा लेकिन रुद्रा जानती थी कि मैं इन सब नर्तकियों में सबसे सुन्दर और यूनिक हूँ और साड़ी पहनने का मेरा अंदाज़ सबसे अलग भी था। क्यूंकि इतनी सारी नृत्यांगनाओं और महिलाओं में सिर्फ मैं और रुद्रा ही थीं जिन्होंने ब्लाउज पहना था और हर किसी की नज़र अब मेरे ऊपर थी तभी महाराज बोले। 

महाराज: वैसे तो मैं इस नृत्य प्रतियोगिता में शामिल सभी नृत्यांगनाओं का नृत्य कौशल देख चूका हूँ और उन्हें उनके हुनर के हिसाब से अंक भी प्रदान कर चूका हूँ परन्तु चूँकि मैं किसी भी प्रतिभागी के साथ किसी भी प्रकार का अन्याय नहीं होने देना चाहता इसीलिए राज नर्तकी की घोषणा से पूर्व मैं उन प्रतिभागियों को एक और मौका देना चाहता हूँ जो ऐसा मानती हैं कि यदि इस प्रतियोगिता में उन्हें एक और अवसर मिला होता तो वे अपनी कला का जौहर दिखा पातीं जी किन्ही कारणवश पिछले प्रयासों में वे नहीं कर सकीं। 



महाराज: यदि आप में से कोई ऐसा सोचता है तो वो कृपया अपना हाथ उठाएं। 

महाराज के ऐसा कहते ही काफी नृत्यांगनाओं ने अपने अपने हाथ उठाकर फिर से प्रयास करने की इच्छा जाहिर की तो सबसे आखिर में मैंने भी अपना हाथ उठा दिया। सबने फिर से नृत्य कौशल का प्रदर्शन किया और आखिर में मैंने भी अपने नृत्य कला का प्रदर्शन किया जिसके बाद महाराज के चेहरे की मुस्कराहट और मेरे ऊपर पड़ी उनकी नज़र एक पल के लिए भी नहीं हट रही थी। लेकिन कुल तीन नृत्यांगनाओं का चयन होना था जिसमे से एक राज नर्तकी और दो नर्तकी राज नर्तकी की दासी बनेंगी। मैंने सोचा कि महाराज अब विनर का नाम बोलेंगे लेकिन उन्होंने एक बार फिर से सभी नर्तकियों को एक और मौका दिया लेकिन इस बार कुल १० नर्तकियों ने अपने हाथ उठाये तो मैंने एक बार फिर से अपना हाथ उठाया लेकिन सबसे आखिर में। नृत्यांगनाओं ने अपना नृत्य कौशल दिखाना शुरू किया तो इधर मैंने भी अपनी चोली को और टाइट बाँध ली और अपने बूब्स के उभार को थोड़ा ऊपर उठा ली। जब मेरी बारी आयी तो इस बार मैंने साड़ी की आँचल से लंबा घूँघट करके अपने नृत्य कौशल का प्रदर्शन किया। इट वज लाईक, मैं जो कुछ भी कर रही थी वो सब करने का लाइफ में करने की कभी सोची भी नहीं थी लेकिन इस जगह से निकल कर दुबारा अपनी लाइफ को वापिस पाने का इससे अच्छा तरीका मुझे नहीं सूझ रहा था। मेरे नृत्य कौशल पर महाराज फ़िदा हो चुके थे। 

महाराज: आप सभी नृत्यांगाओं ने बेहतरीन नृत्य कौशल का प्रदर्शन किया लेकिन विजेता सिर्फ एक ही हो सकती हैं। 

हे सुंदरी, यहाँ आओ! महाराज ने मुझे सामने बुलाया। फिर उन्होंने दो और नृत्यांगनाओं को भी बुलाया। फिर महाराज ने मुझसे और उन दोनों से भी उनका नाम पूछा। मैं महाराज को बोली कि मेरा नाम रोहिणी है। उन दोनों में से एक ने अपना नाम अनुकृति और दूसरी ने अपना नाम सुरसंगिणी बताई। एक पल के लिए मुझे लगा कि अनुकृति और सुरसंगिणी कहीं अक्षय और सुरेश तो नहीं? फिर मैंने सोचा ये सही जगह नहीं है। 

महाराज: हे अप्सरा रोहिणी, आज से तुम इस राज्य की राज नर्तकी हो और अनुकृति और सुरसंगिणी आज से तुम्हारी दासियाँ। महामाया, आप रोहिणी और इनकी दासियों को महल में ले जाएँ और इन्हे इनका कक्ष दिखाएं।

नृत्यकला प्रतियोगिता की समाप्ति रंगारंग कार्यक्रमों के बीच संपन्न हुई। महामाया मुझे और मेरी दोनों दासियों को साथ लेकर एक बहुत से बड़े कक्ष में ले आयी। ऊपर बड़े बड़े झूमर, संगेमरमर का फर्श, स्नान करने के लिए बड़ा सा बाथटब, ढेर सरे सोने,चाँदी और हीरों के जेवर और संग बिरंगी साड़ियां। महामाया की नज़र मेरी ब्लाउज पर थी वहीँ अनुकृति और सुरसंगिणी सर झुकाये मेरे पीछे पीछे चल रहीं थी। एक पल के लिए, आई वज फीलिंग प्राउड ऑफ़ मायसेल्फ कि इतने बड़े डांस कम्पटीशन को मैंने यूँ जीत लिया और मैं बहुत खुश थी। 

मेरी एक नयी जिंदगी शुरू हो चुकी थी। अनुकृति और सुरसंगिणी को मैंने नृत्यकला सिखाना शुरू कर दिया। पुरे महल में कहीं भी आने जाने के लिए मैं स्वतंत्र थी, लेकिन मुझे कभी भी महल में नृत्य प्रदर्शन के लिए बुला लिया जाता। हालाँकि अनुकृति और सुरसंगिणी हर समय मेरे साथ रहती, लेकिन महाराज की इच्छा रहती कि मैं अकेले ही उनके लिए नृत्य प्रदर्शित करूँ। 

अनुकृति और सुरसंगिणी मेरे लिए दासियाँ कम और मेरी सहेलियां ज्यादा बन गयीं थी। नृत्य के साथ मनोरंजन के लिए अनुकृति और सुरसंगिणी मेरी सेवा में रहतीं, नहाते समय मेरे शरीर पर मध् से मसाज करतीं और मुझे अपने हाथों से स्नान करवातीं। मेरी खूबसूरती की तारीफ में कोई कसर नहीं छोड़तीं और मुझसे हमेशा मेरी ब्लाउज के बारे में पूछतीं। इधर मेरे ब्लाउज के चर्चे इतने बढ़ने लगें कि एक दिन महारानी ने मुझे आग्रह करते हुए कहा कि मैं उनके लिए भी ब्लाउज सील दूँ। तो मैंने महारानी के बूब्स के साइज की ब्लाउज सील दी और उन्हें पहनना सीखा दी। महारानी बहुत खुश हुईं और उन्होंने अपनी नाक से बड़ी सी नथिया निकालकर मेरे नाक में पहना दिन और अपनी कलाई से सोने के दो दो कंगन निकालकर मेरी कलाइयों में पहना दी। महारानी खुश थी तो महाराज भी खुश रहने लगे और प्रजा की ख़ुशी के लिए आये दिन मेरा नृत्य कार्यक्रम का आयोजन होता। जब भी कोई शाही अतिथि आतें तो मुझे उनके सामने नृत्य प्रस्तुत करने ले जाया जाता और हर एक शाही अतिथि मेरी नृत्य कला के साथ मेरी खूबसूरती की खूब तारीफ़ करते। बहुत से उपहार मिलते, लाइफ जबरदस्त चल रही थी। अपने अतीत को भुलाकर अपने वर्तमान में मैं निश्चिंत जी रही थी। आठ महीने कब गुज़र गए इसका पता भी नहीं चला, अनुकृति और सुरसंगिणी भी अब नृत्यकला में निपुण हो चुकीं थी और आये दिन राज्यसभा में वे दोनों मेरे गाइडेंस में नृत्य प्रस्तुत करतीं। 

एक दिन महाराज ने अनुकृति और सुरसंगिणी के प्रत्यक्ष मेरे कमरे में आ गए और उन्होंने मेरे और अनुकृति और सुरसंगिणी के साथ रात व्यतीत करने की इच्छा जाहिर की। महाराज को मना करना, ना तो मेरे लिए संभव था और ना ही अनुकृति या सुरसंगिणी के लिए। साढ़े छह फुट लम्बे, मुस्क्युलर महाराज के सामने मैं, अनुकृति और सुरसंगिणी, हम तीनो पांच फुट की नर्तकियां कुछ भी नहीं थीं। लेकिन मैंने कभी भी किसी मर्द के साथ रात बिताने के बारे में कभी नहीं सोचा था, मुझे बहुत डर लगने लगा तो अनुकृति और सुरसंगिणी ने मुझसे कहा कि पहली बार में दर्द तो होगा लेकिन मजा भी बहुत आएगा और मुझे महाराज के सामने ले गयीं। महाराज ने अनुकृति और सुरसंगिणी को न्यूड होने को कहा और फिर उनदोनों ने मुझे भी न्यूड कर दिया। इट वज सो ह्यूमियाटिंग मोमेंट फॉर मी, ऐसे किसी मर्द के सामने न्यूड होना और महाराज की निगाहें एक पल के लिए भी मुझसे नहीं हट रही थी। मैं बहुत डर गयी थी कि आज ये मैं क्या करने जा रही हूँ, महाराज के सामने कुछ बोल भी नहीं सकती लेकिन महाराज के साथ रात बिताने के बारे में मैंने कभी सोचा भी नहीं।  

अनुकृति और सुरसंगिणी ने मुझे महाराज के सामने ले जाकर खड़ा कर दिया और वे दोनों खुद महाराज के बाहों में आ गयीं। महाराज ने उनदोनों को बिस्तर पर लिटाया और मुझे अपनी बाहों में लेकर मेरे गले को चूमने लगे। आह्ह्ह्ह, ये कैसी फीलिंग है, महाराज के साँसों की मर्दानी खुशबु मेरी साँसों में समा रही थी। महाराज ने मेरे जिस्म के एक एक अंग को चूमा और मुझे बिस्तर पर लिटा कर मेरे ऊपर आ गए। मेरे गहने, मेरे कानों के झुमकी, नाक की बड़ी सी नथिया चुभने सी लगी थी और अब महाराज की नज़र मेरी वजाइना पर थी। महाराज के एक एक चुम्बन ने मेरे बूब्स को टाइट कर दिया और उनकी बाहों में मैं आज किसी नार्मल लड़की की तरह अपने आप पर कण्ट्रोल नहीं कर पा रही थी। मैं क्या करती, महाराज की मजबूत बाहों की जकड में मैं कसमसाते हुए उनके टाइट लंड को देखकर बहुत घबरा गयी थी। महाराज ने मेरे चेहरे को ऊपर उठा कर अचानक मेरी वजाइना में अपना लंड घुसा दिए। हाय राम, इतना बड़ा लंड, ओह माँ, दर्द अपने चरम पर था और महाराज मुझे चोदना शुरू कर चुके थे। 


मेरे आंसू रुक नहीं रहे थे और मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रही थी सिवाय रोने के। मैं जोर जोर से रो रही थी, चिल्ला रही थी, रहम की भीख मांग रही थी लेकिन महाराज कहाँ रुकने वाले थे। महाराज पुरे जोश में मुझे चोदे जा रहे थे, मेरी सिसकियाँ, मेरी चीख, मेरे गहनों की आवाज़, मेरी झुमकी का मेरे गले से टकराना, मेरी नथिया का बार बार मेरे होंठों से टकराना और गहनों की चुभन मेरे बदन को सिवाय दर्द के कुछ भी नहीं दे रही थी। महाराज मुझे फुल स्पीड में चोदते रहे और मैं जैसे ही उन्होंने अपने वीर्य को मेरी वजाइना के अंदर डिस्चार्ज मेरे अंदर से भी कुछ पानी सा निकल गया और मैं बेसुध होकर कब सो गयी, इसका पता भी नहीं चला। 


अगली सुबह जब मेरी नींद खुली तो मैंने देखा कि महाराज अनुकृति को अपनी बाहों में लिए उसे चोद रहे हैं और सुरसंगिणी मेरे ही बगल में बेसुध पड़ी हुई थी। अनुकृति की चुदाई देखते ही मैंने अपनी आँखें बंद कर ली, एक तो मेरी वजाइना में इतना दर्द ऊपर अगर महाराज ने मुझे जगा हुआ देख लिया तो कहीं फिर से ना मेरी चुदाई कर दें, इसी डर से मैंने अपनी आँखें बंद कर ली। अनुकृति लगातार रोये जा रही थी, उसकी वजाइना से खून निकल रही थी और वो महाराज से रुकने को कह रही थी। लेकिन महाराज का स्टैमिना देखकर मैं तो हैरान थी, इतना भी क्या सेक्स का भूख जो रात से सेक्स कर रहे हैं लेकिन सुबह हो जाने के बावजूद अभी तक महाराज की भूख नहीं मिटी। थोड़ी देर की चुदाई के बाद अनुकृति भी बेहोश हो गयी और महाराज थोड़ी देर विश्राम करके वहां हम तीनों को नंगी छोड़कर चले गए।    
 
इतनी थकान कि बिस्तर से उठने की हिम्मत हम तीनो में से किसी में नहीं थी लेकिन फिर भी हिम्मत जुटा कर मैं उठी तो अनुकृति और सुरसंगिणी भी मेरे साथ उठ गयीं। हम तीनो ने एक साथ स्नान किया और तैयार होकर कमरे में आ गयीं। महाराज की सभा के समापन से पहले मुझे दरबार में नृत्य प्रस्तुत करने को पुकारा गया और नृत्य प्रस्तुति के बाद मैं अपने शयन कक्ष में थी। थकावट से बहुत नींद आ रही थी तो मैं सो गयी और मेरी दोनों दासियाँ अनुकृति और सुरसंगिणी मेरे पैरों को दबा कर मेरे दर्द को कम करने की कोशिश कर रहीं थी। अनुकृति और सुरसंगिणी के लिए महाराज के साथ सेक्स करना नार्मल था, लेकिन कल की रात मेरी लाइफ की पहली ऐसी रात थी जिसने मुझे अंदर से झकझोर कर रख दिया था। अगले तीन महीनों में एक भी दिन महाराज मेरे शयन कक्ष में नहीं आये और मैं अब पहले से ज्यादा स्त्रीत्व को महसूस करने लगी थी। ना जाने क्यों मेरा मन एक बार फिर महाराज की बाहों में अपने आप को न्योछावर कर देने का करता, जब भी महाराज को देखती उनपर बहुत प्यार आया। अब मैं इस आयाम की खूबसूरत स्त्री बन चुकी थी जिसने अपने अतीत को भूलकर अपने वर्तमान को स्वीकार कर लिया था। एक दिन बातों बातों में अनुकृति ने बताया कि नृत्यांगना बनने से पहले वो डाकुओं के साथ रहती थी और दो डाकू उसके भाई थे। अनुकृति ने बताया कि एक दिन उसके दोनों भाई नदी किनारे से दो लड़कियों को ले आये जो स्वर्ग की अप्सरा सी खूबसूरत थीं और फिर अनुकृति के दोनों भाइयों ने उनदोनो से विवाह कर लिया और आज सुबह उसे सुचना मिली है कि उसकी दोनों भाभियाँ माँ बनने जा रहीं हैं। आई वज लाइक, ओह्ह गॉड, अक्षय और सुरेश को उन्दोनो डाकुओं ने अपनी पत्नी बना लिया और दोनों प्रेग्नेंट भी हैं। 

मैं यहाँ राज महल में राज नर्तकी बन महाराज की एक बार भूख भी मिटा चुकी थी। क्या यहीं हम तीनो दोस्तों के नसीब में लिखा था। ओह्ह गॉड, हम तीनो के साथ ऐसा क्यों हुआ, क्यों हम तीनों को ऐसा दिन देखना पड़ रहा है। नेहा, निकिता और सविता ना जाने किस हाल में होंगी, हम तीनो यहाँ किस हाल में हैं और वे तीनो जंगल में। मैं गहन सोच में थी, अनुकृति को अपने दोस्तों के बारे में कुछ बता नहीं सकती थी और ना ही महाराज को। महल से बाहर जाना भी पॉसिबल नहीं था मेरे लिए लेकिन अगर महाराज की आज्ञा मिल जाती तो मैं जाकर सुरेश और अक्षय से मिलकर उनका हाल जान लेती। 

इन कुछ महीनों में महल और राज्य की स्त्रियों में मेरी तरह ब्लाउज पहनने की चाह बढ़ने लगी थी और मुझे बड़े ही मान सम्मान से सभी स्त्रियां मिलतीं और मेरे कपड़ों की तो खूब तारीफ करतीं। महल और राज्य के बाहर भी मेरे नाम की चर्चा बढ़ने लगीं थी और दूर दूर से राज्यों के राजकुमार, महाराज हमारे महाराज से सिर्फ इसीलिए दोस्ती का प्रस्ताव रखतें ताकि वे सब मेरे नृत्य का आनंद ले सकें। सिचुएशन धीरे धीरे मेरे हाथों  निकलता जा रहा था। महाराज से बाहर जाने की अनुमति मांगना मतलब अपनी मृत्यु को निमंत्रित करना या कोई न कोई सजा तो जरूर मिल जाती। ऐसा मैं सोचती थी लेकिन एक दिन महाराज के सामने नृत्य प्रस्तुत करने के बाद जब महाराज ने मुझसे कुछ भी मांग रखने को कहा तो ख़ुशी से मेरा चेहरा खिल उठा। मैंने महाराज से कहा कि जब मुझे उनसे कुछ माँगना होगा तो मैं मांग लुंगी , लेकिन फिलहाल मैं राज्य घूमना चाहती हूँ अनुकृति और सुरसंगिणी के साथ। महाराज ने तुरंत मेरे, अनुकृति और सुरसंगिणी के पालकी मंगवाई और मैं कुछ ही पलों में पूरी सुरक्षा के साथ प्रजा के बीच थी। सबसे पहले मैं योगिनी से मिलने गयी तो योगिनी मुझे देखकर बहुत प्रसन्न हो उठी। योगिनी ने मुझे बताया कि वो पल बिलकुल नज़दीक है जब मैं फिर से अपने आयाम में जा सकुंगी। लेकिन एक ऐसी परेशानी भी थी कि मेरे आयाम में मुझे और मेरे दोस्त सुरेश और अक्षय को इसी स्त्री जाना होगा और ये मैं तो कतई नहीं चाहती थी। मैं चाहती थी कि जब मैं अपने आयाम में वापिस जाऊं तो रोहन बनकर ना कि रोहिणी बनकर। योगिनी से मिलने के बाद मैं अनुकृति के घर गयी जहाँ हम तीनो का खूब स्वागत सत्कार हुआ। वहां मैं सुरेश और अक्षय से मिली जो वहां दोनों डाकुओं की पत्नियां बनकर ख़ुशी ख़ुशी अपनी जीवन को स्पेंड कर रहीं थी। अब अक्षय का नाम अक्षरा और सुरेश का नाम सरिता था और दोनों ही गर्भवती थीं। ओह्ह माय गॉड, ये क्या हो गया, सुरेश और अक्षय, सरिता और अक्षरा बनकर अपने अपने पति के साथ, इतने गहनों में लदी, दोनों ही बेहद खूबसूरत दिख रहीं थी। राज्य की औरतों की तरह अक्षरा और सरिता ने भी बिना ब्लाउज के ही साड़ी पहनी हुईं थी, ऊपर से गहने, नाक का नथ इतना बड़ा और झुमके भी काफी हैवी पहन रखे थे। दोनों  को देखकर यकीन ही नहीं हो रहा था कि मेरे दोनों दोस्त स्त्री बनकर कितनी खुश हैं।    

मैं सोच में पड़ गयी कि क्या इन दोनों को इस बारे में कुछ बताऊँ या नहीं लेकिन फिर मैंने अनुकृति से कहा कि मैं अक्षरा और सरिता से अकेले में बात करना चाहती हूँ। अनुकृति मान गयी और थोड़ी ही देर में मैं अक्षरा और सरिता एक कमरे में बिलकुल अकेली थीं, कमरे के बाहर मेरे अंगरक्षक तैनात थे और अब मुझे अपने दोनों दोस्तों से बात करने के लिए पूरी तरह से आजादी थी। मैंने सरिता और अक्षरा को बताया कि मैं उनका दोस्त रोहन हूँ तो सरिता और अक्षरा की आँखें खुली की खुली रह गयी। आई वज लाइक, दोनों ने मुझे हग कर लिया और दोनों बहुत रोयीं तब मैंने उन्हें बताया कि एक योगिनी हैं जिनकी मदद से हम फिर से अपने आयाम में वापिस जा सकती हैं। लेकिन अक्षरा और सरिता ने मुझसे कहा कि वे दोनों इस आयाम में बहुत खुश हैं। अक्षरा और सरिता मुझसे बोली कि अब इसी आयाम में वे दोनों रहना चाहती हैं और दोनों एक एक करके अपने अपने पतियों के बारे में बताने लगीं कि उनके पति उनसे कितना प्रेम करते हैं। आई वज लाइक, ये क्या हो गया है इन दोनों को? दोनों अच्छे खासे मर्द थे, और आज औरत बनने के बाद लाइक दोनों अपने अपने पतियों का गुणगान कर रहीं थीं। मैंने फिर भी दोनों से कहा कि वापिस चलने का मन करे तो अनुकृति के थ्रू मुझे बता दें। सरिता और अक्षरा ने मुझसे कन्फर्म कहा कि वे दोनों अपने अपने अपने पति और होने वाले बच्चों की सेवा करते हुए इसी आयाम में अपनी लाइफ को स्पेंड करना चाहती हैं। मैं सुरेश और अक्षय की गर्लफ्रेंड से क्या कहूँगा और फिर मैं गुस्सा होकर वहां से सीधे राजमहल वापिस आ गयी। अब चाहे जो भी हो, मुझे तो अपने आयाम मे वापिस भी जाना है और अपनी लाइफ मे सेटल होना है। 

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