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A beautiful story by ICN

 “आउच, आई! जरा धीरे से कर ना! मैं लड़की नहीं हूँ जिसको ये सबकी आदत है। कल ही तो नाक मे छेद किया है और आज ही तू इतनी बड़ी नथ पहना रही है मुझे। तुझे मुझ पर जरा भी तरस नहीं आता न? “, मैंने अपनी आई यानि मेरी माँ से कहा। पर मेरे कुछ कहने का कोई फर्क ही नहीं पड़ा उस पर।

“जानती हूँ कि तू लड़की नहीं है और तुझे इसकी आदत नहीं है। पर अब ज्यादा दिन नहीं बचे है तेरी शादी को। तुझे इतना कुछ सीखाना है।“, वो बोली।

“क्यों सीखाना है सब? बेटा हूँ मैं तेरा!”, मैंने कहा।

“हाँ, तू मेरा बेटा है पर तेरे ससुराल वालों को तो बहु चाहिए न?”, वो बोली और फिर मेरी ओर देखकर बोली, “नथ अच्छी लग रही है तुझ पर। मराठी सुनबाई (मतलब बहु) नथ के साथ ही अच्छी लगती है।“ ऐसा कहते कहते वो हँस दी। पर मुझे तो बहुत गुस्सा आ रहा था। मुझे किसी की बहु नहीं बनना है।

पर मेरे गुस्से का कोई फायदा नहीं था। ये सब मेरे बाबा यानि पिताजी की वजह से था। मराठी मे हम माता-पिता को आई-बाबा कहते है और बहु को “सुनबाई”।

मेरी नाक पर ये नथ तो फिर भी छोटी परेशानी थी। सिल्क की साड़ी, ब्लॉउज़, हाथ मे इतनी सारी कांच की चूड़ियाँ मेरे लिए ज्यादा बड़ी परेशानी थी। और उससे भी बड़ी परेशानी का कारण था ये ब्लॉउज़ मे भरे हुए लगभग १ किलो के ब्रेस्टफॉर्म। सीने पे इस भार को सही से न संभालो तो शाम तक मेरी कमर मे दर्द हो जाता है। मेरा तो मन था कि उनको निकालकर उनकी जगह सॉक्स या कुछ हल्का सा भर लूँ पर मेरी आई को चाहिए पर्फेक्शन। जबसे मेरी शादी पक्की हुई है मुझे सब कुछ सीखाने मे लगी हुई है ताकि मेरे ससुराल वालों को अपनी बहु से कोई शिकायत न रहे। मुझे गलत मत समझना, शादी तो मेरी मर्जी से हो रही है पर ये सब जो हो रहा है, ये मेरी मर्जी से नहीं हो रहा है।

अपनी आई पर गुस्सा करके मैं तमतमाते हुए कमरे से बाहर निकल आया। और चलते हुए ये साड़ी भी भारी मुसीबत है। जब तब मेरे पाँव मे फंस जाती है और बाहर आते ही एक बार फिर मेरा पैर मेरी साड़ी पर पड़ गया और मैं गिरते गिरते बचा।

“अरे देखकर चल। अब तक तुझे साड़ी संभालना नहीं आया। अपनी आई से कुछ सीखता क्यों नहीं? थोड़ा धीरे चलाकर, ससुराल मे दिन भर साड़ी पहनकर रहेगा तब वहाँ भी ऐसे ही करेगा क्या?”

ये आवाज थी मेरे बाबा की। मुझे गिरते देखकर ताना मार रहे थे और फिर वापस अपना अखबार पढ़ने मे मगन हो गए।

“आपको क्या है? ये सब आपकी वजह से तो हो रहा है।“, मैंने गुस्से मे कहा।

“अब मुझे क्यों कोस रहा है। मैंने थोड़ी कहा था तुझे साड़ी पहनने को। मैंने तो बेटा पैदा किया था। मुझे क्या पता था कि ऐसा दिन आएगा जब मुझे अपने बेटे के लिए साड़ियाँ और गहने खरीदने पड़ेंगे। तेरी शादी मे इतना खर्च कर रहा हूँ और तू मुझे ही उल्टा सीधा बोल रहा है?” अपना अखबार पलटते हुए बाबा बोले।

बाबा ताना जरूर मारते है पर उनकी आवाज मे गुस्सा नहीं होता। ऐसा लगता है जैसे वो मेरी इस हालत मे मुझे देखकर मन ही मन हँसते है। वो चाहे जो भी बोले, ये सब उन्ही की वजह से हुआ है। पर उनसे कुछ कहने का मतलब नहीं था। इसलिए किसी तरह साड़ी पकड़कर मैं अपने कमरे मे चला आया।

आप सोच रहे होंगे कि इन सबमे मेरे बाबा कैसे जिम्मेदार है? ठीक है, बताता हूँ। 

मेरी ज़िंदगी अच्छी खासी थी। बचपन से मैं पढ़ने में भी अच्छा था। इसलिए इस छोटे से शहर से मुझे बाहर निकलकर मुंबई मे नौकरी करने का मौका भी मिला। लोग कहते है कि बड़े शहरों में खुली हवा मे सांस लेना नसीब नहीं होता। पर मेरे लिए तो शायद मुंबई से ज्यादा खुली हवा कहीं नहीं थी। जिस बात को मैं बचपन से अपने अंदर दबाकर रखा था वो बात अब इस शहर मे सभी से न सही, पर कुछ लोगों से जरूर कह सकता था। मेरी आई और मेरे बाबा तो इस बात को कभी समझेंगे ऐसा तो मैंने सोचा भी नहीं था, और कभी मुझे उनको समझाने की जरूरत भी नहीं लगी थी। सोचा था कि पूरी ज़िंदगी कुंवारा रहकर बीता लूँगा, किसी को उससे क्या फर्क पड़ेगा? पर एक दिन मुंबई में मुझे अमन मिल गया। और इससे पहले मैं कुछ समझ पाता मुझे और अमन को प्यार हो गया।

प्यार तक तो ठीक था पर मेरा शादी करने का मन न था। लेकिन अमन की जिद के आगे हार मानकर हम दोनों ने बहुत हिम्मत करके अपने अपने माता-पिता को बताया और अमन के माता पिता को मेरे आई बाबा से मिलने और शादी की बात करने के लिए बुलाया।

जब दोनों परिवार मिले तो सभी यहाँ वहाँ की बातें करते रहे पर कोई वो बात करने को तैयार न था जिसके लिए मिले थे। सभी के मन मे झिझक जो थी। पर अमन ने मेरे बाबा से कहा कि अब शादी की भी बात हो जाए।

मैं अब तक मेरे बाबा को समझ नहीं सका हूँ। मेरी आई तो मुझसे नाराज थी पर बाबा ने तो कभी गुस्सा नहीं दिखाया था। और फिर उन्होंने जो कहा वो सुनकर तो मुझे यकीन ही नहीं हुआ।

“देखिए ये बात कहना और करना हम सभी के लिए मुश्किल तो है पर करनी तो पड़ेगी ही। बच्चों के जीवन का सवाल है। उनकी खुशियों की बात है। मैंने तो सोचा था कि मेरे बेटा कार्तिक एक दिन मेरे लिए बहु लेकर आएगा पर मुझे क्या पता था कि ऐसा भी दिन आएगा।”, बाबा ने कहा तो बाकी सभी ने सहमति मे सर हिलाया।

फिर बाबा आगे बोले, “खैर, अब जो हो रहा है होने दिया जाए। मुझे इनकी शादी से कोई ऐतराज नहीं है। पर एक लड़के का पिता होने के नाते मेरी एक इच्छा या यूं कहे कि एक शर्त है।”

अमन की मम्मी जो अब तक चुप थी वो बोली, “कैसी शर्त भाईसहब?”

“छोटी सी शर्त है बहन जी। बस इतनी सी बात है कि इनकी शादी के बाद हमारे घर मे बहु आए जिसका हम गृह-प्रवेश कराए और हमारी बहु हमारे साथ १ हफ्ते रहे। और जीवन मे आगे भी हर साल २-३ दिन हमारी सेवा करे।”

“ये क्या कह रहे है भाईसाहब? हम कुछ समझे नहीं।”, अमन की मम्मी ने कहा। उनके चेहरे के हाव भाव से उनका तेज तर्रार स्वभाव साफ दिख रहा था पर मेरे बाबा को कोई फर्क न पड़ा और वो बड़े इत्मीनान से बोले, “मेरा मतलब यह है कि अमन १ हफ्ते तक हमारे घर मे बहु बनकर हमारी सेवा करे। और आगे भी साल मे कुछ दिन हमारी बहु बनकर रहे।”

ये बात सुनकर तो जैसे अमन की मम्मी गुस्से से लाल हो उठी।

“देखिए भाईसाहब। हमने भी बेटा ही पैदा किया था और हमारी भी बहु की चाहत थी। यदि आप ऐसा चाहते है तो फिर कार्तिक को भी हमारे घर मे बहु बनकर हमारी सेवा करनी होगी। बोलीये आपको स्वीकार है ये?”, अमन की मम्मी ने गुस्से से कहा।

मैं तो खुद अपने बाबा से गुस्सा हो चला था कि ये कैसी विचित्र शर्त उन्होंने रख दी थी। मैं अमन के साथ ऐसा नहीं होने दे सकता था। मुझे लगा कि अमन की मम्मी की बात सुनकर मेरे बाबा अपनी शर्त वापस ले लेंगे।

पर मेरे बाबा तो खिलखिलाने लगे और बोले, “अरे बहनजी, आपकी बहु है। आप जैसे चाहे उससे अपनी सेवा करवाए। मुझे उससे क्या? बस मुझे अपनी बहु मिल जाए मुझे और कुछ नहीं चाहिए।”

मेरे बाबा की बात सुनकर तो सबके चेहरे की रंगत उड़ गई। मेरी आई भी अचंभित होकर उनकी ओर देखने लगी। और अमन की मम्मी तो जैसे अपनी ही बात मे फंस गई थी। उस समय सिर्फ मेरे बाबा हँस रहे थे। और बिना कुछ कहे दोनों परिवार इस शर्त के लिए तैयार हो गए कि शादी के बाद अमन हमारे घर बहु बनकर आएगा और उसके बाद मैं बहु बनकर उनके यहाँ जाऊंगा!

ये ऊटपटाँग सी शर्त मैं ऐसे कैसे मान जाता? मैं और अमन दोनों लड़के है। एक दूसरे से प्यार करते है इसका मतलब ये तो नहीं कि हम दोनों लड़की बनना चाहते है।

“बाबा !!” मैंने विरोध करने के लिए जरा जोर सी आवाज में कहा।

“क्या हुआ? अब देख क्या रहा है अपने सास-ससुर को मिठाई खिला! और उनके पैर छूकर आशीर्वाद ले!”, बाबा बोले।

“हाँ, बहन जी। हमारी होने वाली बहु को कुछ खाना बनाना वगैरह भी सीख दीजिएगा तो उसके लिए भी आगे काम आएगा। हम भी आपकी बहु को सीखा देंगे।”, बाबा एक बार फिर बोलकर हँसने लगे। और सभी ने दबी हुई हंसी के साथ उनका साथ दिया।

तो ये कहानी थी जिस वजह से मुझे ये साड़ी पेटीकोट पहनकर बहु बनने के पाठ सीखने पड़ रहे है। ऐसा नहीं था कि अमन या मुझमे कोई लड़कियों जैसे गुण थे। अमन और मैं, ऐसे थे जिन्हे देखकर कोई सोच नहीं सकता था कि हम गे है। हम दोनों किसी सामान्य लड़कों की तरह ही थे। और वैसे भी हममे असामान्य क्या था जो हम अलग दिखे? वो तो फिल्मों मे कुछ भी दिखाते है।

मैं अपने कमरे में आकर अपने बिस्तर में पालती मार कर बैठ गया। साड़ी पहनकर कुछ भी करना बड़ा मुश्किल होता है। न जाने मेरी आई साड़ी पहनकर इतना कुछ कैसे कर लेती है। मुझे तो बेचारे अमन के बारे में सोचकर भी बुरा लग रहा था। न जाने वो कैसे कर रहा होगा ये सब? उसके बारे में सोचते हुए मेरे चेहरे पर थोड़ी सी खुशी आ गई। और मैंने सोचा क्यों न उसे व्हाट्सप्प पर विडिओ कॉल लगाकर उससे बात कर लूँ और अपना मन भी हल्का कर लूँ। फोन को उठाते ही मुझे फोन पर अपना प्रतिबिंब नजर आया। नाक पर नथ और माथे पर बिंदी, लंबे बाल, होंठों पर लिप्स्टिक की लाली के साथ अमन से बात करने की खुशी, उस प्रतिबिंब को देखकर तो एक पल को ऐसा लगा कि एक लड़की अपने साजन से बात करने को लेकर बड़ी खुश है। सिर्फ एक नथ और बिंदी ने मेरे रूप को एक लड़की का रूप दे दिया था। खैर मैंने अपने लंबे बालों को पीछे किया, साड़ी को थोड़ा सलीके से संवारा क्योंकि बार बार वो मेरे कंधे से फिसल जाती है – और खुशी से अमन को कॉल लगाया। पर अमन महाशय ने मेरा कॉल रिजेक्ट कर दिया! उनकी ऐसी हिम्मत? तुरंत ही मेरे चेहरे पर नाराजगी छा गई। पर कुछ ही देर में अमन का कॉल आया – बिना विडिओ के।

“तुमने विडिओ कॉल क्यों नहीं किया?”, फोन उठाते ही मैंने गुस्से में कहा।

“ओहो कार्तिक। कैसे बताऊँ यार? मुझे तुम्हारे सामने इस तरह साड़ी पहनकर आने में शर्मिंदगी महसूस हो रही है।”, उसने कहा।

“तो मैंने भी तो साड़ी पहनी है। अब क्या तुम मेरा मुंह भी नहीं देखोगे?”

“ओहो … यार कम से कम तू तो मेरी बात को समझ सकता है न?”, उसने मायूसी से कहा।

हाँ, मैं अमन की दुविधा समझ सकता हूँ क्योंकि अमन बड़ा ही masculine मैचो किस्म का लड़का है। बॉडी बिल्डर – उसकी बॉडी और पर्सनैलिटी ऐसी है कि कोई भी लड़की उसकी दीवानी हो जाए। पर अब उसे भी मेरे बाबा की वजह से घर में साड़ी, लहंगा, ब्लॉउज़ और सब तरह के गहने पहनकर अपनी माँ से ट्रेनिंग लेना पड़ रहा है।

“अच्छा ये बताओ कि वहाँ सब ठीक है न घर पर?”, उसने पूछा।

“यार बस तुम्हारी तरह मेरा भी हाल है। तंग आ गया हूँ ये साड़ी पहनकर। दिन भर मेरी चूड़ियाँ खनखनाती रहती है और ये मेरे कान के झुमके – न जाने कितनी बार मेरे बालों में फंस जाते है। और फिर माँ के ट्रेनिंग भी दिन भर चलती रहती है।”

“हा हा .. इतनी सी बात? अपने बालों की चोटी बना लो या फिर जुड़ा बनाकर बांध कर रखो तो झुमके परेशान न करेंगे।”, उसने कहा।

“हम्म तो तुम तो बहुत कुछ सिख गए हो!”

“सीखता नहीं तो क्या करता? अब बस एक हफ्ता जो बचा है दुल्हन बनकर तुम्हारे घर आने के लिए!”

“अच्छा, सुनो। मैंने तुम्हें बताया था न कि कल मेरी आई ने मेरी नाक छिदवाई थी। पता है आज उन्होंने मेरी नाक में एक बड़ी सी मोतियों की महराष्ट्रीयन नथ भी पहना दी है! इतनी भारी लग रही है मेरी नाक कि कह नहीं सकता। बहुत गुस्सा आ रहा है अपनी आई पर …”, मैंने अपनी नाक को सहलाते हुए कहा तो मेरी चूड़ियाँ एक बार फिर खनक उठी।

“मुझे यकीन है तुम पर बहुत सुंदर लग रही होगी नथ!”, अमन ने कहा।

“रहने दो। तुम्हें क्या पता ये नथ का दर्द …”, मैंने शिकायती लहजे में कहा। और एक बार खुद को कमरे के आईने में देखा। चाहे जो भी हो नथ मुझ पर सुंदर तो लग रही थी जैसे मैं लड़का नहीं लड़की ही हूँ!

“ओहो तुम मराठी लड़कियों को क्या पता हम मारवाड़ियों का दर्द। तुम सिर्फ एक नथ की बात कर रहे हो। मेरी माँ ने तो मेरे लिए जितनी भी साड़ियाँ खरीदी है, कोई भी ४-५ किलो से कम की नहीं है। साड़ी का वजन संभालते संभालते तो कमर में बंधे पेटीकोट के नाड़े से मेरी कमर पे निशान पड़ जाता है। और मेरी माँ मुझे गहनों से लादकर रखती है वो अलग। पता है माँ ने शादी के लिए मेरे लिए पूरे २२ किलो का लहंगा खरीदा है!”, अमन बोला।

अमन को इस तरह लड़कियों की तरह बातें करते सुन मुझे हंसी आ गई।

“डार्लिंग तुम तो बॉडी बिल्डर हो, ये ४-५ किलो की साड़ी तुम्हारा क्या बिगाड़ लेगी?”, मैंने कहा।

“हम्म साड़ी तो मैं संभाल लूँगा पर ये मेरे सीने पे ३ किलो के ब्रेस्टफॉर्म जो है – ये बड़ी मुसीबत है यार। इतनी बड़ी ब्रा होते हुए भी कुछ ज्यादा सपोर्ट नहीं मिलता।”, अमन बोला।

“३ किलो!”, मुझे थोड़ा अचरज हुआ पर सच तो ये है कि अमन का सीना चौड़ा है तो उसके अनुरूप उसे बड़ी ब्रा और बड़े ब्रेस्टफॉर्म भी पहनने होंगे। मैंने उसकी माँ को देखा है, उनके भी बूब्स बहुत बड़े है।

“अपनी माँ पर गए हो। उन्ही की तरह बड़े बूब्स है तुम्हारे!”, मैंने हँसते हुए कहा।

“इशश … यार मुझसे मेरी माँ के बूब्स के बारे में मत बातें करो।”, अमन शरमाते हुए बोला।

“अच्छा ठीक है। वैसे तुम्हें साड़ी पहनकर देखने की बड़ी इच्छा हो रही है। न जाने कैसे दिखते हो तुम?”, मैंने कहा।

“१ हफ्ते में देख लेना जब हम दोनों साथ होंगे! वैसे अपनी तारीफ खुद नहीं करना चाहता मगर बड़ा ही सेक्सी दिखता हूँ। हा हा हा… इतना सेक्सी की कोई भी लड़का मेरा दीवाना हो जाए। “, अमन बोला और हँसने लगा।

“खबरदार किसी पराए लड़के की ओर तुमने आँख भी उठाई तो! मारूँगी मैं तुम्हें!”, मैंने कहा। न जाने कैसे मेरे मुंह से लड़कियों की तरह शब्द निकल आए। मुझे तो खुद पर लाज आने लगी।

“लो तुम तो सचमुच लड़की बन गई हो!”, अमन ने कहा।

“अब मुझे परेशान मत करो। देखो मुझे अभी जाना होगा। मेरी पड़ोस की दोस्त रिया आने वाली है मुझे मेकअप और हेयर स्टाइल सिखाने के लिए।”

“ओके डार्लिंग। वैसे रिया ने तुम्हें पहले कभी साड़ी पहने देखा है?”

“नहीं यार … ये पहली बार है। अभी तो तुम्हारा प्यार पाने के लिए मुझे और बहुत जलील होना बाकी है अमन बाबू! पता नहीं रिया क्या सोचेगी मेरे बारे में।”

“Don’t worry! सब ठीक होगा।”, अमन ने कहा। और फिर हमने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया।

रिया आने ही वाली होगी। तो मुझे तैयार रहना होगा उसे इस रूप में फेस करने के लिए। इस वक्त ब्लॉउज़ में मुझे कुछ कसमसाहट हो रही थी। तो इसलिए मैंने ब्लॉउज़ के नीचे से उंगली डालकर अपनी ब्रा को थोड़ा एडजस्ट किया। ऐसा मैंने पहले कुछ औरतों को करते देखा था। पर एक लड़का होते हुए भी मुझे ऐसा करना पड़ेगा ऐसा तो मैंने कभी सोचा नहीं था। मैंने एक बार फिर अपने बालों और पल्लू को संवारा और खुद को आईने में देखा। चाहे ये साड़ी ब्लॉउज़ मेरे लिए मुसीबत से कम नहीं थी पर इस मेहंदी रंग की सिल्क साड़ी को पहनकर मैं खूबसूरत दिख रहा था। इतने खूबसूरत रंग के कपड़े लड़कों के लिए कम ही बनते है। लड़कियां इस मामले में थोड़ी ज्यादा लकी है।

मैं कमरे से बाहर निकलता उसके पहले ही मुझे सप्राइज़ देते हुए रिया अंदर आ गई।

“ओहो देखो तो होने वाली दुल्हन को। कितनी खूबसूरत लग रही है।“, रिया आते ही मुझे छेड़ने लगी।

“यार रिया तू तो मेरा मज़ाक मत उड़ा। तू तो मेरी बचपन की दोस्त है।“, मैंने शरमाते हुए कहा और एक बार फिर अपनी साड़ी के आँचल से ब्लॉउज़ को ढंकने की कोशिश की। ये साड़ी को दिन भर संभालते संभालते मैं तंग आ चुका था।

“उफ्फ़ किस नजाकत से अपनी साड़ी संवार रही है नई दुल्हन …”, रिया तो जैसे चुप ही न होने वाली थी।

तो मैंने गुस्से से उसकी ओर देखा। वो खुद तो सलवार सूट पहनी हुई थी और मैं यहाँ लड़का होते हुए साड़ी संभाल रहा था।

“ओहो कार्तिक। नाराज क्यों होता है? दुल्हन के साथ थोड़ी मौज मस्ती तो चलती है। और फिर गुस्सा तो मुझे होना चाहिए … हम बचपन से दोस्त है पर तूने मुझे अपने होने वाले दूल्हे के बारे में कभी बताया नहीं..”, वो बोली।

मैं कुछ देर चुप रहा। आखिर कैसे बता देता मैं रिया को अमन के बारे में? अभी भी इस सोसाइटी में लोग गे के बारे में कैसी कैसी बातें करते है।

“तुझे क्या लगा था कार्तिक? कि मैं तेरे रिश्ते को समझूँगी नहीं? तुझे बचपन से जानती हूँ मैं।“

“अहम .. तुझे मेरे बारे में पहले से पता था? पर मैंने कभी को अपने बारे में न कहा था और न ही किसी को पता चलने दिया था।“, अब बारी मेरी थी आश्चर्यचकित होने की।

“हाँ तूने कभी कहा नही था। पर तुझे याद है हमारी स्कूल में एक जय नाम का लड़का पढ़ता था। जब हम लोग साथ खेलते थे मिलते थे और कभी जय की बात हो जाए या फिर वो हमारे सामने आ जाए तब तेरा चेहरा बिल्कुल किसी लड़की की तरह शर्म से लाल हो जाता था। तुझे जय पसंद था न?”

रिया के मुंह से जय का नाम सुनकर तो मुझे जैसे एक झटका लगा। हाँ मन ही मन मैं जय को पसंद करता था लेकिन वो किसी और को इतनी आसानी से पता चल गया था? मैंने रिया को कोई जवाब देना ठीक नहीं समझ क्योंकि मेरी शादी अब किसी और से हो रही है जिसे मैं सचमुच पसंद करता हूँ। मैंने रिया से मुंह फेरकर पलट गया तो रिया ने मेरी साड़ी को पकड़ कर मेरे सर पर पल्ला रखते हुए बोली, “हाय रे शर्मीली दुल्हन।“

“बस कर न यार रिया। मुझे तंग मत कर।“, मैंने गुस्से से कहा।

“उफ्फ़ तेरी कजरारी गुस्से से भरी आँखें!”, रिया हंसने लगी।

“अच्छा एक बात बता … मुझे ये तो पता था कि तुझे लड़के पसंद है। पर मुझे ये नहीं पता था कि तू …”, और वो चुप हो गई।

“तू क्या?”, मैंने पूछा।

“यही कि तू ट्रांसजेंडर है?”

“तू पागल है क्या रिया? मैं ट्रांसजेंडर नहीं हूँ। मैं एक लड़का हूँ और मुझे उससे कोई प्रॉब्लम नहीं है।“, रिया की बात से मेरा मूड खराब हो गया था।

“तो फिर ये दुल्हन का लिबास? ये साड़ी? ये सब क्यों? तुझे लड़कियों के कपड़े पसंद है?”, रिया का ये सवाल मुझे गुस्सा तो दिला रहा था पर इसमे उसकी भी क्या गलती थी।

“यार मैं गे हूँ। क्रॉसड्रेसर नहीं!”

“अब ये क्रॉसड्रेसर क्या होता है?”, रिया ने पूछा।

“ओफो क्रॉसड्रेसर वो लड़के होते है जिनको लड़कियों के कपड़े पसंद होते है। आमतौर पर वो स्ट्रेट होते है बस कभी कभी लड़की की तरह सजना पसंद करते है।“, मुझे रिया को उस विषय के बारे में समझाना पड़ा जिसके बारे में मुझे थोड़ा बहुत ही पता था। अक्सर तो लोग ये भी सोचते है कि कोई गे है तो उसको लड़कियों के कपड़े पसंद होंगे या फिर कोई लड़कियों के कपड़े पहनता है तो वो गे होगा। जबकि इन दो बातों में कोई रिश्ता नहीं है। मैं तो खुद किसी और लड़कों की तरह ही कपड़े पसंद करता था और मुझे ज्यादा फैशन का शौक भी न था। एक देओडेरेंट के अलावा मेरे पास कभी कुछ और न था। और इसके बाद मुझे रिया को अपने बाबा की शर्त के बारे में बताना पड़ा जिसकी वजह से मैं दुल्हन बन रहा था।

“अच्छा ये सब छोड़।“, रिया बात बदलने लगी, “तुझे मेकअप के बारे में कुछ पता है?”

“नहीं। और मुझे सीखना भी नहीं है।“, मैं थोड़ा गुस्से में बोल।

“ओहो तू इतने नखरे क्यों कर रहा है? अब सुनबाई बन ही रहा है तो उसके मजे भी ले ले थोड़े। सुंदर दिखने में खुद को भी बहुत खुशी मिलती है। और फिर ससुराल में नहीं सुनबाई को सुंदर दिखना पड़ता है।“

मरता क्या न करता? उस दिन तो रिया ने न जाने मुझे कितनी ही हजारों चीजों के बारे में बताई। एक चेहरे पर ही लड़कियां कितनी चीज़े लगाती है और आँखों में ही तो न जाने कितने रंग! मुझे ये सब थोड़ा भारी लग रहा था। अब कैसे ते करूंगा कि कौन सी साड़ी में कौन से रंग अच्छे लगेंगे?

“यार अभी दो-चार दिन प्रैक्टिस करन तुझे सब समझ आ जाएगा। और फिर मैं हूँ न सीखने के लिए!”, वो हंस पड़ी और साथ ही साथ मुझे सब सीखाती रही। मेरे चेहरे पर इस समय उसने कोई फाउंडेशन लगाया था। सच कहूँ तो किसी भूतनी से कम नहीं लग रहा था मैं – पूरा सफेद सा चेहरा।

लगभग ४ घंटे बाद रिया ने जब मुझे पूरा मेकअप करके मेरा चेहरा देखने को कहा तो मेरी आँखों पर मुझे विश्वास ही नहीं हुआ। मैं पूरी तरह से लड़की लग रहा था वो भी बहुत खूबसूरत। मैं तो खुद को देखते ही रह गया। खुद को इतना खूबसूरत देखकर मुझे खुशी भी मिल रही थी जैसा कि रिया ने कहा था।

“यार रिया मैं तो खुद को पहचान नहीं पा रहा हूँ।“, मैंने एक बार फिर अपनी फिसलती हुई साड़ी को संभालते हुए कहा।

“इशश … यार इतनी सुंदर दुल्हन और इतनी कर्कश आवाज। जरा नजाकत ला अपनी आवाज में।“, वो बोली।

“अब ठीक है रिया मैडम?”, मैंने मुस्कुरा कर नखरे दिखाते हुए आवाज धीमी और नर्म करते हुए बोला।

“हाँ, अब ठीक है। तू थोड़ी आवाज पर भी प्रैक्टिस करना।“, वो मुस्कुरा कर बोली।
अब मेकअप के बाद मैं उठने लगा तो मेरी साड़ी फिर से फिसल पड़ी और मेरे ब्लॉउज़ दिखने लगे। “यार रिया … ये साड़ी का क्या करून यार। तंग आ गया हूँ इससे?”, अबकी बार मैंने अपनी आवाज किसी लड़की की तरह रखी।

“तंग आ गया हूँ नहीं तंग आ गई हूँ बोल!”, वो हंसने लगी और फिर बोली, “अच्छा मैं तुझे साड़ी पहनना और उसको संभालना भी अच्छे से सीखा दूँगी।“

मेरी स्थिति भी विचित्र थी। रिया लड़की होकर सलवार कुर्ती में बिल्कुल फ्री थी और मैं लड़का होकर साड़ी पहन परेशान था। दिल तो कह रहा था कि मैं भी साड़ी छोड़ सलवार पहन लूँ पर मुझे उसकी पर्मिशन नहीं थी क्योंकि ससुराल जाकर नई बहु को पूरे समय साड़ी पहनकर रहना होता है।

शादी को ज्यादा दिन नहीं बचे थे इसलिए मेरी ट्रेनिंग जोर शोर से चल रही थी। रोज सुबह सुबह उठकर मैं नहाता, लगभग आधे घंटे लगाकर साड़ी पहनता और फिर और आधा घंटा मेकअप करने में लगता। मैं धीरे धीरे मेकअप करन सीख रहा था और मुझे वो अच्छा भी लगने लगा था। रिया ने सही कहा था कि खुद को खूबसूरत देखकर खुद को पहले खुशी मिलती है।

फिर तैयार होने के बाद मेरी आई मुझे अलग अलग तरह के व्यंजन और नाश्ता बनाना सिखाती। दोपहर होते तक रिया भी आ जाती जो मुझे अलग अलग तरह से साड़ी पहनना, और हेयर स्टाइल करना सीखाती। कुछ देर मेकअप के बारे में भी समझाती। उसके बाद मेरी आई के साथ शादी की प्लैनिंग में लग जाती। एक दिन मेरी आई खुशी से रिया को वो साड़ी दिखा रही थी जो मैं शादी के दिन पहनने वाला था। पता नहीं क्यों इतनी खुश थी वो? उसकी खुशी तो जैसे रोज रोज बढ़ती ही जा रही थी। मेरे मेकअप के बाद तो मेरे चेहरे से नजर भी उतारने लगी थी वो।

“आई, तू इतनी खुश क्यों है? मैं तेरा बेटा हूँ और तू मुझे ऐसे देखकर इतनी खुश कैसे?”, एक दिन मैंने पूछ ही लिया।

तो वो हँसकर बोली, “क्योंकि पहले तू कभी मेरे साथ इतना समय कहाँ बीताता था? अब तू मेरे बारे में भी जान रहा है और सब कुछ सीख रहा है। और इस बहाने मुझे वो मौका भी मिल गया जो मुझे कभी मिलने न वाला था। मुझे अपनी बेटी को सजाने और सीखाने का मौका।“

आई की बात सही थी। इसके पहले तक वो हमेशा किचन में रहती थी और मुझे तो बस एक राजकुमार की तरह बस खाने को मिलता रहता था।

दिन भर के काम के बाद जब मैं अपने कमरे में आकर अपनी साड़ी उतारता, ब्लॉउज़ खोलकर अपनी ब्रा के हुक खोलता तो ब्रेसटफॉर्म के वजन से मुक्त होते ही एक आराम मिलता था। मेरे ब्रेसटफॉर्म १-१.५ किलो के तो होंगे ही। और उसके बाद मैं एक नाइटी पहनकर सो जाता। न जाने कब और कैसे मुझे नाइटी पसंद आने लगी थी। मैं तो ये भी सोचने लगा था कि आगे चलकर भी अपने घर में शादी के बाद मैं कभी कभी नाइटी पहनकर ही सोया करूंगा। एक बात और भी मुझे महसूस होने लगी थी। दिन भर ब्रा पहनने के बाद उसके बीन अब जैसे कुछ अधूरा अधूरा सा लगने लगा था। उसका कसाव न जाने क्यों लुभाने लगा था मुझे। शायद इसलिए शादी के एक दिन पहले मैं ब्रा के साथ ही सो गया था।

शादी की सुबह सभी को जल्दी से तैयार होकर होटल जाना था जहां शाम को शादी थी। उसी होटल में अमन और उसके परिवार वाले भी रुके हुए थे। मेरे सास ससुर से मिलना होने वाला था इसलिए मुझे अच्छी सी साड़ी पहन्नी थी। मैं तो रिया के पहुँचने के पहले ही एक अच्छी सी सिल्क साड़ी निकालकर पहन चुका था। मेरी बनाई हुई कंधे पर पिन की हुई प्लेट पहली बार इतनी सुंदर बनी थी। सिल्क साड़ी में मैं दमक रहा था। थोड़ा सा मेकअप और नाक में नथ पहनने के बाद तो ऐसा लगा जैसे मुझसे खूबसूरत कोई नहीं। रिया तब तक खुद तैयार हो कर आ गई थी। उसने आते ही मेरे सर पर बालों का जुड़ा बनाकर उसे सजाने के लिए कुछ अलग अलग तरह की पिन लगाई। मेरी आई तो मुझे देखकर खुशी से मुझसे गले लग गई।

“अब गले मिलना हो गया हो तो सब सामान कार में रखकर होटल चले? देर हो रही है?”, ये मेरे बाबा की आवाज थी। मैं अब भी उनसे नाराज था। पर एक हाथ में पल्लू और एक हाथ में सूटकेस पकड़ मैं कार की ओर बढ़ चला। लड़कियों की चप्पल पहन चलने में मैं आदि हो चुका था। लेकिन समय समय पर मुझे अपनी नथ को छूकर थोड़ा सहेजना पड़ता था। अब भी मेरी नाक में थोड़ा दर्द था। उसे छूते हुए अब मेरे हाथ की दर्जनों चूड़ियाँ अब मुझे परेशान नहीं कर रही थी। सूटकेस कार में रखने के बाद जब मैंने अपनी साड़ी को संभालते हुए जरा सा उठाकर कार में बैठा तो दूसरे दरवाजे से रिया मेरे बगल में बैठती हुई बोली, “बन गई न तू परफेक्ट सुनबाई!” उसकी बात सुनकर न जाने मुझे क्यों थोड़ा सा गर्व हुआ। और मैं मुस्कुरा दी। रिया के साथ मैं कुछ दिनों से लड़कियों की तरह बात करने लगा था तो दिल भी जैसे खुद को एक लड़की का दिल मानने लगा था। उस पल में मैं होने वाली दुल्हन थी। और दिल में एक खुशी के साथ मैं होटल की ओर बढ़ चली क्योंकि इतने दिनों के बाद मैं अमन को देखने वाली थी।

होटल पहुंचते ही मेरे दिल की धड़कनें तेज हो गई। “मैं अच्छी तो दिख रही हूँ न?”, मैंने रिया से नर्वस होते हुए पूछा। “अरे इतनी सुंदर दिख रही है कि अमन भी यही सोचेगा कि तुझे लड़की ही होना चाहिए।“, रिया मजे लेते हुए बोली।

थोड़ी देर में आई-बाबा और थोड़े बहुत मेहमान जो शादी में शामिल होने वाले थे। वो भी अलग अलग गाड़ियों से पहुँच गए। सबेरा का नाश्ता दोनों तरफ के परिवार साथ में ही करने वाले थे। इसलिए सभी ने झटपट अपने कमरों में सामान रखा और उस हाल के तरफ चल दिए जहां नाश्ता होने वाला था। पता नहीं क्यों मेरी हालत बड़ी नर्वस हो रही थी। एसी हॉल में भी चलते हुए पसीना निकाल रहा था जो मेरी बाँहों से बहकर मेरे ब्लॉउज़ को गीला कर रहा था। आई ने मेरे लिए खास ब्लॉउज़ सिलाये थे जिसके अंदर अस्तर का कपड़ा लगा था जिससे की पसीना दिखाई न दे। पर वो तो नॉर्मल लड़कियों के काम आता है। मेरी तो हालत ज्यादा खराब थी शायद इसलिए थोड़ा सा स्पॉट तो बन ही गया था।

हाल में पहुंचते ही कुछ दूर में मुझे अमन अपने माता-पिता और बहन के साथ दिखाई दिया। न जाने क्यों मैं उम्मीद कर रहा था कि वो अपने हैंडसम रूप में वहाँ होगा पर वो तो एक चटकीली गुलाबी भारी सी जयपुरी साड़ी में सर पर घूँघट रखकर अपनी बहन के साथ खड़ा था। ऊपर से नीचे तक गहनों से लदा हुआ। उसने सही कहा था कि उसकी साड़ी कम से कम ५-६ किलो की तो होगी ही और ब्रेस्ट .. इतने बड़े की चेहरा समा जाए। आखिर वो एक बॉडी बिल्डर था। लेकिन इसके बाद भी इतना खूबसूरत दिख रहा था कि मुझे तो यकीन ही नहीं हुआ। उस तरफ देखकर रिया मुझसे बोली, “वही अमन है न?” मैंने हाँ का इशारा किया तो वो बोली, “लगता है आज तो काम्पिटिशन होने वाला है कि कौन ज्यादा सुंदर दुल्हन दिखेगी?” वो हंसने लगी तो मैं उसे “चुप कर” कह कर झिड़क दिया। “सुंदर तो मुझे ही ज्यादा दिखना है। अब ये तेरी जिम्मेदारी है।“, मैंने आगे कहा तो वो मेरा हाथ पकड़ उस ओर चलने लगी। मेरे आई-बाबा भी सामने ही अपने नए समधी से मिलने जा रहे थे।

वहाँ पहुंचते ही घूँघट ओढ़े हुए अमन ने झुककर मेरे आई-बाबा के पैर छूकर आशीर्वाद लिया। उसे देख मुझे भी याद आया तो मैं भी उसके माता-पिता के पैर छूने लगा। मराठियों में क्यों इतना घूँघट का चलन नहीं होता शायद इसलिए उसकी माँ को मेरा खुला सर अच्छा नहीं लगा। पर मुझे क्या मुझे तो बस अमन से बात करने की इच्छा था। दिल तो कर रहा था कि उससे जाकर बोलू, “looking cute dear”. लेकिन अमन की मम्मी थोड़ी दकियानूसी विचारों की थी। उन्होंने मुझे अमन के पास जाने ही न दिया बल्कि अपने ही बगल में मुझे खड़ा कर हमेशा साथ रखी रही। मैं न सही पर रिया तो जाते ही अमन से बात करने लग गई। उसे इस तरह घूँघट संभालते शरमाते हुए बात करते देखा मुझे अजीब लग रहा था। यकीन नहीं हो रहा था कि वो इतना परफेक्ट हो गया था। उसकी चाल में भी एक सॉफ्नस थी। छोटे छोटे कदम, एक हाथ में घूँघट और मारवाड़ी स्टाइल में पहनी कुछ लहंगे की तरह लहराती साड़ी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मुझे अमन से जलन हो रही है या गुस्सा आ रहा है। मैंने अपनी आई कि ओर देखा तो ऐसा लगा जैसे मैं सोच रहा था कि आई तूने मुझे ये सब क्यों नहीं सिखाई।

नाश्ता हुआ उसके बाद दोनों फॅमिली अपने अपने कमरों की ओर चल दिए जहां शादी के पहले की अपनी अपनी रस्में होनी थी। अपने सास-ससुर से दूर आकर मुझे थोड़ा आराम मिला। यहाँ मैं अपनी फॅमिली के साथ थोड़ी मौज मस्ती में लग गया। मेरी नजर तो सब लड़कियों और औरतों पर थी कि वो कैसे खुद को केरी करती है ताकि मैं शादी के समय बिल्कुल लड़की लगूँ। मेरे चचेरे भाई बहन भी आए थे जो मुझे छेड़ रहे थे। अब तक तो मेरी शर्मिंदगी खत्म हो चुकी थी। अब जो हो रहा था सो हो रहा था। कोई कुछ कहे भी तो सब बाबा की गलती थी मेरी नहीं। इस पूरे समय में मैंने रिया को हमेशा अपने साथ ही रखा और वो भी एक अच्छी सहेली की तरह मेरी हर बात का ध्यान रख रही थी जैसे मेरे बाल सही से रहे, या फिर साड़ी को कुछ हो तो तुरंत वो ठीक कर देती।

“देख मैं तेरी शादी में इतना कुछ कर रही हूँ। ऐसे ही मेरी शादी में भी तुझे ये सब करना पड़ेगा। समझी न?”, रिया ने ऐसे ही मेरे पल्लू को सँवारते हुए कहा था।

तो मैंने पलट कर कहा था, “यार तब तक मैं ऐसे ही थोड़ी रहूँगी। ये तो बस शादी के कुछ दिनों तक के लिए है।“

मेरी बात सुनकर रिया गुस्सा हो गई। “देख .. तुझे शादी के बाद कार्तिक बनकर रहना है तो रह लेना। पर मेरी शादी में तुझे कृति बनकर आना ही पड़ेगा। मैं कुछ नहीं जानती।“ (रिया और दूसरे सभी अब तक मुझे कृति कहकर बुलाने लगे थे।)

“ठीक है मेरी माँ। मैं आऊँगी तेरी शादी में और ऐसे ही आऊँगी। पर पहले मेरी शादी तो हो जाने दे। और देख ले तू … आज मैं यदि अमन से अच्छी दुल्हन न लगी न तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा”, मैं थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए और थोड़ा हँसते हुए बोला।

कुछ देर बाद सभी का दोपहर का खाना हुआ। शादी के मुहूर्त के लिए अभी भी ६ घंटे बाकी थे पर मेरी आई और रिया दोनों मुझे तैयार करने के लिए ऐसे परेशान थे जैसे आधे घंटे में शादी होनी है। मेरे मेकअप के लिए पार्लर वाली को बुलाया गया था। शादी की साड़ी पहनने के पहले मेरा मेकअप चला जिसे रिया और मेरी आई दोनों देखकर सुझाव दे रहे थे। न जाने कितने घंटों के बाद आई ने फिर वो पैठनी साड़ी लेकर आई जिसे मुझे पहन्नी थी। यूं तो आई को साड़ी पहनने में कभी समय नहीं लगता था पर मुझे सजाने में न जाने क्यों इतना समय लगाया गया। उन्हे एक एक चीज परफेक्ट चाहिए थी। तीनों औरतें मिलकर मुझे सजा रही थी। ऐसी शान तो दूल्हा बनकर भी न मिलती जो दुल्हन बनकर मेरे साथ हो रहा था। मैं तो जैसे एक गुड़िया थी जिसके चारों ओर से उसे सजाया जा रहा था। रिया कमर में मोती की कोई चीज पहना रही थी तो पार्लर वाली गले में हार। फिर चूड़ी कंगन और न जाने क्या क्या।

अंत में मेरी आई ने पाँव की एक उंगली में बिछिया पहनाई और मुझसे बोली कि कोई भी सुहागन मराठी लड़की अपने पैर से कभी बिछिया नहीं उतारती। मुझे समझ नहीं आया कि आई मुझे बस ये बात बता रही है या मुझसे कह रही है कि आगे चलकर जब मैं वापस कार्तिक बनकर रहूँगा तब भी ये बिछिया पहनकर रहूँ।

चाहे जो भी हो उस पल को तो मैं राजकुमारी सा महसूस कर रहा था। और दर्पण में मेरी जो छवि थी वो किसी राजकुमारी से कम नहीं थी। “अब देखती हूँ कि अमन मुझसे सुंदर कैसे दिखता है।“, मैं मन ही मन खुद से बोली। मेरा कुछ उन्ही औरतों की तरह हाल था जो सोचती है कि उसकी साड़ी मेरी साड़ी से सुंदर कैसे और जलती है। मेरी जलन के पीछे एक कारण और भी था। अमन हमेशा हम दोनों में स्ट्रॉंग था। और मैं चाहता था कि शादी में भी वैसा ही लगे।

मुझे तैयार करने के बाद आई और रिया भी उसी कमरे में तैयार होने लगे। आई तो फिर भी बाथरूम जाकर कपड़े बदलकर आई थी पर रिया तो मेरे सामने ही कपड़े बदल रही थी। इन ६-७ दिनों में रिया और मेरे बीच इतना कुछ बदल गया था कि अब रिया को मेरे सामने कपड़े बदलने में कोई संकोच न रहा। मेरे ही सामने उसने अपनी खूबसूरत सी ब्रा के ऊपर सुंदर सी हल्के पीली रंग के चोली और फिर लहंगा पहना। मैं उसे देखता ही रह गया। बहुत खुसबुरत थी रिया और उसकी काया। पर मेरी नजर किसी सामान्य लड़के की नजर से अलग थी। मैं तो रिया से बहुत कुछ सीख रहा था ताकि अपने ससुराल जाकर मैं भी उस तरह से व्यवहार कर सकूँ। फिर भी मेरी सास मुझसे बहुत खुश होगी उसकी उम्मीद कम थी क्योंकि उनके परिवार के मुकाबले हमारे परिवार में औरतों मे थोड़ी ज्यादा स्वतंत्रता थी।

शादी का मुहूर्त का समय भी हो चला था। सजधजकर रिया और मेरी चचेरी बहन शिखा दोनों मेरे कंधे पर हाथ रख मुझे ले जाने लगी। मैं भी नजरे झुकाए धीमे धीमे एक एक कदम लेकर शादी के स्टेज की ओर बढ़ने लगा। मुझे पता नहीं कि दुल्हन की नजरे ऐसी झुकी हुई क्यों होती है पर मेरी नजर इसलिए झुकी थी ताकि आँख उठाने पर मुझे सबसे पहले सिर्फ अपने जीवनसाथी का चेहरा दिखे। जब हम स्टेज के पास पहुंचे ही थे कि रिया ने मेरे कान में कहा, “यार तुम दोनों में ज्यादा सुंदर दुल्हन कौन है कहन बहुत मुश्किल है। तुम दोनों लाखों में एक लग रही हो।“

मैं मन ही मन मुस्कुरा दिया। इस समय मन में जलन नहीं थी बल्कि गर्व था मेरे जीवनसाथी पर। और फिर मेरी आँखों के सामने उसका शर्मिला चेहरा था जिसे देख अपनी खुशकिस्मती का एहसास हुआ। शादी में आए मेहमानों के लिए ये एक बड़ी ही विचित्र सी शादी थी जो उन्होंने पहले कभी न देखि थी। एक तो ये दो लड़कों की शादी थी और दूसरी बात ये कि इस शादी में दो लड़कों के होते हुए भी कोई दूल्हा न था – बल्कि दो खूबसूरत दुल्हनें थी।

फिर शादी के रस्में हुई, फेरे हुए जिसमें कुछ फेरो में मैं और कुछ में अमन आगे था। फिर हम दोनों ने एक दूसरे को मंगलसूत्र भी पहनाया। फिर बड़ों से सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद भी लिया। शादी की रस्मों के बाद सभी ने मिलकर डांस भी किया। कुल मिलाकर वही सब जो किसी और शादी में होता। बस इतना ही फरक था कि मैं एक सुंदर पैठनी साड़ी में दमक रही थी और अमन २२ किलो के लहंगे में नजाकत से भरा था। उसके बूब्स और गहनों के साथ ३०-३२ किलो को ढोते हुए भी वो बहुत शालीन लग रहा था।

इन सबके बाद, मेरे आई बाबा के साथ मेरे परिवार वाले अपनी नई बहु यानि मेरे अमन को साथ लेकर देर रात को घर लौट आए। घर में नई बहु का गृहप्रवेश हुआ और कुछ रस्में हुई। ये सब कुछ अमन बिल्कुल नई बहु की तरह इतनी आसानी से कर रहा था कि मुझे उस पर बहुत गर्व हो रहा था। लेकिन साथ ही साथ इतना सब करते हुए मैं थक भी गया था। अब मन कर रहा था कि जल्दी से जल्दी साड़ी और गहने उतार कर नाइटी पहनकर सोने जाऊन। मुझे तो अमन पर ज्यादा तरस आ रहा था जो इतना वज़न संभाले सब कुछ शांति से कर रहा था।

सब रस्में होते तक सुबह के ३ बज चुके थे। तब जाकर हम दोनों को अपने कमरे में जाने दिया गया जिसे सुहागरात के लिए फूलों से सजाया गया था। किसी और की सुहागरात में क्या और कैसे होता है ये तो मुझे पता नहीं पर हम दोनों की सुहागरात में वैसा कुछ नहीं हुआ जैसा लोग सपना देखते है।

हम दोनों जैसे ही अपने कमरे में पहुंचे, मैंने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। और जाते ही बिस्तर पर पैर पसार कर कहा, “यार ये सब गहने साड़ी पहनकर थक गया हूँ।“ सबसे ज्यादा तो मुझे वो भारी विग परेशान कर रहा था।

मुझे पसरते देख अमन मेरे पास धीरे से आकर बैठ गया और मेरी ओर देखते हुए बोला,”हाँ यार। मैं भी थक गई हूँ। ये लहंगा भी न बहुत भारी है।“

अकेले में भी अमन को इस तरह लड़कियों की तरह बात करते देख मैंने उसकी तरफ अचरज भरी नज़रों से देखा और खुद अपनी साड़ी पर लगी हुई पिन को खोलकर सबसे पहले तो पल्लू को फ्री किया और फिर अमन का हाथ पकड़ कर मसखरी करते हुए कहा, “तो आओ मैं तुम्हारा लहंगा उतार देता हूँ।“

“उफ्फ़ तुम भी न। पहले मेरे गहने उतारने में मदद कर दो। लहंगा तो मैं खुद बदल लूँगी।“, अमन तो पूरी तरह से दुल्हन की तरह व्यवहार कर रहा था। लेकिन हम दोनों को एक दूसरे की मदद की जरूरत थी। न जाने हमारी साड़ी और लहंगे में कितनी ही जगह पिन लागि हुई थी और फिर इतने सारे गहने भी तो थे। हम दोनों ने एक दूसरे के गहने उतारने में मदद की। ऐसा पल मेरी ज़िंदगी में आएगा ऐसा तो कभी नहीं सोचा था मैंने। मैं अमन के हाथ से चूड़ियाँ और भारी कंगन उतारने में मदद करने लगा तो उसने कहा, “रहने दो न इन्हे। माँ ने कहा है कि शादी के बाद १५ दिन तक हाथ सुने नहीं रहने चाहिए।“

“ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी।“, अपनी नाक से नथ उतारते हुए मैंने कहा और फिर अलमारी की ओर बढ़ चला। उस अलमारी में मैंने पहले से अमन के साइज़ का कुर्ता पैजमा रखा था जिसे वो पहनकर सो सके। मैंने उसे जब प्यार से कुर्ता पैजमा दिया तो उसने अपने झुमके उतारते हुए कहा, “नहीं, मैं साड़ी पहनकर सोऊँगी। मैं अपने साथ रात को सोने के लिए खास साड़ियाँ लाई हूँ“ उसने अपने सूटकेस की ओर इशारा किया।

“साड़ी? पक्का? मेरे पास तुम्हारे साइज़ की नाइटी भी है।“, मैंने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा।

“नहीं। मैं साड़ी ही पहनूँगी। माँ कहती है कि मेरे परिवार की इज्जत अब मेरे हाथों में है। मैं नहीं चाहती कि मेरे सास-ससुर मुझे साड़ी के अलावा कुछ और पहने देखे।“, अमन ने एक साड़ी निकालते हुए मुझे दिखाते हुए कहा।

अमन की बात सुनते ही मुझे बहुत गुस्सा आ गया। एक तो वो लड़कियों की तरह बात कर रहा है और अब साड़ी पहनने की जिद कर रहा है।

“तुझे क्या हो गया है अमन? ये लड़की की तरह बात करना बंद कर।“, मैंने गुस्से में उससे कहा।

पर उसके चेहरे पर अब भी मुस्कान थी। वो भी एक लड़की की तरह। उसके हाव-भाव भी वैसे ही थे। वो तो जैसे पत्नी ही बन गया था। और फिर धीरे से मेरे पास आकर मेरे हाथ को पकड़ कर मेरी साड़ी को छूते हुए कहा, “कुर्ता पैजमा तुम पहन लो। मैं मना नहीं करूंगी। पर ये तुम्हारा घर है और मेरा ससुराल। यहाँ मैं बहु बनकर आई हूँ तो मुझे बहु होने का कर्तव्य पूरी तरह से निभाने दो कार्तिक। यही वादा तो तुम्हारे पिताजी से किया था न मैंने? अब मैं वो वादा कैसे तोड़ दूँ?”

मैंने उसकी ओर देखा तो मैं उसमे अपना अमन ढूँढता रहा पर मुझे वो कहीं दिखा नहीं। शायद उसकी बात सही थी पर मेरा दिल नहीं मान रहा था। कुछ देर में अमन ने लहंगा चोली बदलकर साड़ी पहन ली। इतनी आसानी से उसे साड़ी पहनते देख मुझे और बुरा लग रहा था। रात को सोने के लिए भी उसकी माँ ने उसे जो साड़ी दी थी वो हल्की फुलकी न थी। मैं उसे गुस्से से देखता रहा तो वो मेरे पास आया और मेरी साड़ी को प्यार से उतारने में मेरी मदद करने लगा। साड़ी के बाद उसकी नजर मेरे पैर पर पहनी हुई बिछिया पर पड़ी। उसने उसे उतारने के लिए हाथ बढ़ाया तो मैंने उसे मना कर दिया। यदि वो अपनी माँ की बात माँ सकता है तो मैं भी अपनी आई की कही हुई बात मानने को तैयार था। उसके बाद मैंने खुद ही नाइटी पहन ली। और फिर चेहरा धोकर हम दोनों सोने के लिए बिस्तर पर आ गए। मैं अब भी गुस्से में था इसलिए मैंने अमन से मुंह फेर लिया था। हम दोनों सचमुच थक चुके थे इसलिए हम दोनों को तुरंत नींद भी आ गई।

उस गहरी नींद के बाद मेरी आँख देर सुबह अमन की आवाज से ही खुली। “सुनिए। अब उठ जाइए। मम्मी जी और पापा जी आपका इंतज़ार कर रहे है।“ मैंने आँखें खोली तो अमन मेरे सामने नह धोकर तैयार खड़ा था। या यूं कहूँ तैयार खड़ी थी। ऑरेंज रंग की ज़री वाली साड़ी में लिप्स्टिक मेकअप बिंदी मंगलसूत्र और चूड़ियों के साथ – सजधजकर मुसकुराते हुए खड़ी थी वो। लोगों ने उसके इस रूप को मीना नाम दिया था पर मैं उसे सिर्फ अमन के रूप में देखना चाहता था। अब तक मेरा गुस्सा शांत हो चुका था। अच्छा ही तो था कि अमन इस रूप में ढल चुका था वरना कितनी शर्मिंदगी महसूस होती उसे इस तरह बहु बनकर। मैंने भी फिर प्यार से उसकी बांह को खींचकर कहा ठीक है मैं तैयार होता हूँ पर वो मुझसे बांह छुड़ाती हुई कमरे से बाहर चली गई।

अब शादी तो हो गई थी और अब अपने ससुराल जाते तक मुझे साड़ी पहनने की जरूरत भी नहीं थी। फिर भी न जाने मुझे क्या सूझी और नहाने के बाद मैंने भी एक खूबसूरत सी साड़ी पहन ली। शायद मैं अमन को वो फ़ील कराना चाहता था जो मैं उसे इस तरह देखकर फ़ील कर रहा था। मैंने भी ब्राइट रेड लिप्स्टिक लगाई और अच्छे से मेकअप किया और जब तक मैं कमरे से बाहर आया तब तक सुबह के १० बज चुके थे।

बाहर निकलते ही मैंने देखा कि रिया भी घर पर ही थी और मेरे बाबा के साथ बैठी नाश्ता कर रही थी। और उसे अमन घूँघट ओढ़े कह रहा था, “और लीजिए न दीदी। मैं और गरम गरम पराठे बनाकर लाती हूँ।“

रिया ने मेरे बाबा से कहा, “अंकल जी आपकी सुनबाई तो बहुत बढ़िया नाश्ता बनाती है।“

और बाबा भी गर्व से फुले हुए थे। फिर उन्होंने मुझे देखते हुए कहा, “लो लाटसाहब भी आखिर उठकर बाहर आ गए। और ये साड़ी क्यों पहन रखा है अब?”

“जब तक अमन घर में बहु बनकर है। मैं भी साड़ी ही पहनूँगा।“, मैंने गुस्से से बाबा से कहा। मुझे लगा कि शायद बाबा को इस बात से कुछ फरक पड़े और वो अमन से कहे कि अब वो इस तरह से न रहे। पर उनको तो जैसे फर्क ही न पड़ा। उलटे मुझसे कहते है, “अच्छा है। थोड़ा हाव-भाव सिख लेगा तो ससुराल जाकर हमारा नाम खराब नहीं करेगा। कुछ बहु से सीख ले।“

और फिर अमन की ओर देख कर बोले, “बहु। सुनो … ये हमारे परिवार में घूँघट की पद्धति नहीं है। इसलिए तुमको इस तरह सर पर ढँककर रहने की जरूरत नहीं है। घूँघट हटा दो तो तुमको भी काम करने में आसानी होगी।“

“जी पापा जी। जैसा आप कहें।“, अमन ने बिल्कुल एक बहु की तरह व्यवहार करते हुए कहा।

मुझे एक बार फिर अमन पर गुस्सा आने लगा था। मैं उससे गुस्से में बात करना चाहता था पर वो तो सारा दिन मेरी आई के साथ किचन में अलग अलग पकवान बनाने में लगा हुआ था। मेरी आई तो ऐसी बहु पाकर जैसे खुशी से फुली नहीं समा रही थी। देर दोपहर तो जब अमन को मौका मिला तो वो कमरे में आया। उसके चेहरे पर पसीना तो था पर खुशी भी थी। और मुझे देखते ही कहा, “क्या हुआ जी? आप ऐसे नाराज क्यों दिख रहे है?”

उस पल न जाने क्या हुआ – मन में नाराजगी के होते हुए भी मेरी आँखों में आँसू आ पड़े। और मुझे ऐसे देखते ही वो झटसे दौड़कर मेरे बगल में आकर मेरे सर को अपनी गोद में रखकर मेरे बालों को सहलाने लगा। उसके गहने पायल और चूड़ियों की आवाज मेरे कानों में खनक रही थी और मैं उसकी साड़ी में सर छिपाकर और रोने लगा तो उसने अपने पल्लू से मेरे आंसुओं को पोंछ मुझसे पूछा, “कहिए न? बात क्या है?”

“I am sorry, Aman. मेरी वजह से तुझे इतना कुछ सहना पड़ रहा है।“, मैंने कहा।

“अरे आप कैसी बातें कर रहे है? मुझे क्या सहना पड़ रहा है? थोड़ा सा खाना ही तो बनाया है मैंने। और क्या किया? और फिर मम्मी जी और पापा जी मुझे इतना प्यार भी तो दे रहे है। I wish की मेरे माता पिता भी तुमको इतना ही प्यार दे सके जितना मुझे यहाँ मिला है। पर मुझे पता है कि ऐसा नहीं होगा। इसलिए सॉरी तो मुझे बोलना चाहिए।“

मैं तो अमन की ओर अविश्वास भरी नज़रों से देखता रह गया। कितनी ही सहजता से वो इस परिस्थिति को संभाले हुआ था और मेरे बाबा की इस ऊटपटाँग सी शर्त को मान रहा था। उसके चेहरे पर कोई शिकायत का भाव भी नहीं था। उसको ऐसे देख मेरा दिल भी अब हल्का हो चला था फिर भी दिल में चाहत थी कि हम दोनों इस घर से दूर अपने घर में अपनी तरह से जी सके।

मुझे इस तरह एक टक देखते हुए उसने मुझसे कहा, “सुनीये आप सुबह से मुझे देख रहे है पर आपने एक बार भी मुझे नहीं बताया कि मैं कैसी लग रही हूँ।“

“बहुत सुंदर।“, मैंने कहा और उसे गले से लगा लिया।

दिन बीत रहे थे। अमन ने बहु के रूप में सबका दिल जीत लिया था। और उसे देखकर मैं भी उससे बहुत कुछ सीख रही थी। साड़ी पहनकर कैसे चलना है, बड़ों से कैसे बात करनी है और उनकी सेवा कैसी करनी है? ये सब किसी और स्त्री के बदले मुझे अमन से ज्यादा अच्छे से सीखने को मिल रहा था क्योंकि वो और मैं एक ही तरह थे। जब हम दोनों को एकांत मिलता तो वो मुझे सीखाती कि उसके घर में किस तरह से घूँघट लेकर रहना होता है। कुछ ही दिनों में मैं भी साड़ी पहनकर परफेक्ट ग्रेस के साथ चलना और व्यवहार करना सीख गई थी। अमन एक अच्छी पत्नी होने का कर्तव्य भी मुझे सीखा गई थी।

अमन के साथ मैं भी एक बहु होने के गुण सीख रहा था। हम दोनों ही अब खुश थे।

अब मेरे बाबा की शर्त के अनुसार एक हफ्ता पूरा होने में बस एक दिन बचा हुआ था। उस दिन उन्होंने मेरी आई और हम दोनों को बुलाया और साथ में बिठाकर बात करने लगे। मेरा मन अब भी मेरे बाबा के लिए कुछ गुस्से से भरा हुआ था क्योंकि ये सब उन्ही की वजह से हुआ था। मैं कुछ कहती उसके पहले ही बाबा अमन से बोल पड़े, “बहु, तुम्हें शायद लगता होगा कि मैं थोड़ा सनकी बूढ़ा हूँ। पर मैं आज तुम दोनों को और तुम्हारी आई को बताना चाहता हूँ कि मैंने ये शर्त क्यों रखी थी इस शादी के लिए।“

अमन और मैंने एक दूसरे का हाथ थाम बाबा की बात सुनने लगे।

“तुमको याद होगा कि तुम दोनों की शादी के लगभग १ साल पहले मैं और तुम्हारी आई १ हफ्ते के लिए अपने बेटे से मिलने उस घर में रहने आए थे जहां तुम दोनों साथ रहते थे। तुम दोनों के बारे में हमें तब कुछ पता भी नहीं था। हमें तो बस यही लगता था कि तुम दोनों बैच्लर लड़के हो जो घर शेयर करके रह रहे हो। उस एक हफ्ते में मैंने देखा था कि तुम्हारे घर में न ढंग का स्टोव था, न बर्तन और न कुछ सामान। तुम दोनों ही बाहर से खाना मँगवा कर खाते थे। किसी तरह तुम्हारी आई ने उस छोटे से स्टोव में उन दिनों खाना बनाया था। तुम दोनों अपने अपने घर के अकेले लड़के थे जिनको सब कुछ बना बनाया मिलता था और तुम दोनों को घर गृहस्थी के बारे में कुछ भी नहीं पता था। खाने के बाद एक प्लेट भी धोना नहीं आता था तुम दोनों को। ज्यादा से ज्यादा तुम लोग मैगी बनाकर खाते थे। लेकिन शादी के बाद दोनों जीवनसाथी को मिलकर घर गृहस्थी बसानी होती है और चलानी होती है। और तुम दोनों को इस बात का जरा भी ज्ञान नहीं था। यदि तुम दोनों इस अनुभव से नहीं गुजरते, तो तुम्हारा घर आगे भी वैसे ही चलता – न किसी को खाना बनाना आता और न ही किसी को बर्तन धोना। इसलिए मैंने ये शर्त रखी थी ताकि तुम लोग अपना घर बसा सको। कार्तिक का तो पता नहीं पर अमन तुम इस बात के लिए अब पूरी तरह से तैयार हो चुके हो। इसलिए अब तुम चाहो तो अब ये साड़ी छोड़कर अपने कपड़े पहनकर फिर से रह सकते हो।“

बाबा की बात सुनकर हम दोनों ही चकित थे। उतनी ही चकित आई भी थी क्योंकि उनको भी बाबा के इस कारण के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। हम दोनों ही एक दूसरे का हाथ पकड़कर उठ खड़े हुए बाबा के पैर छूने के लिए आगे बढ़ पड़े। पर बाबा ने हमें पैर छूने न दिया बल्कि हमें गले से लगा लिया।

हम दोनों की आँखों में खुशी के आँसू थे। अब मैं इतना तो सीख चुकी थी कि ये खुशी के आँसू मैं अपनी साड़ी से पोंछ सकती हूँ। फिर हम दोनों ने आई की ओर देखा तो वो भी हमारे पास आकर हम दोनों के चेहरों को प्यार से छूते हुए बोली, “यदि इसकी शादी किसी लड़की से हुई होती तो मुझे सिर्फ एक बहु मिलती। अच्छा हुआ कि ऐसा नहीं हुआ क्योंकि मुझे दो बेटियाँ भी मिल गई।“

उस पल में हम सभी भावुक थे पर अब सभी खुश थे। हम एक परिवार बन चुके थे। अगले दिन हम दोनों को अब मेरे ससुराल जाना था जहां अब मेरी बारी थी बहु बनने की। अमन की सीख और मेरे बाबा की बात की वजह से मैं भी वहाँ सब का दिल जीत सकी।

अब हमारी शादी को लगभग २ साल हो चुके है। अब अमन और मैं पहले की भांति अपने असली रूप में स्वतंत्र रूप से जीते है। पर शादी के समय के वो अनुभव हमें आज भी प्रेरित करते है। चाहे किसी को पता चले न चले, हम दोनों के गले में हमारी शर्ट के भीतर वो मंगलसूत्र हमेशा होता है जो हमने एक दूसरे को पहनाया था। मेरी आई की शिक्षा के अनुसार मेरे पैरों में हमेशा बिछिया होती है जिसे मैं कभी नहीं उतारता। कभी कभी किसी दिन मैं या अमन आज भी अपनी अलमारी से साड़ी निकालकर पहनते है और वो विनम्रता का भाव एक बार फिर सीखते है जो तब सीखा था। और जैसा वादा मैंने रिया से किया था, जब उसकी शादी हुई तब उसकी शादी में उसके साथ हर पल रहने वाली सहेली बनकर अपना वादा मैंने पूरा किया था।

समाप्त

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